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१०० | तीर्थकर महावीर
अब एक भयंकर पिशाच अट्टहास से शून्य दिशाबों को भय-भैरव बनाता हुमा प्रभु के समक्ष आया, अनेक प्राणघातक आक्रमण करने पर भी महावीर को वह चलित नहीं कर सका।"
तभी त्रिशूल जैसे तीक्ष्ण नखों वाला बाघ महावीर पर झपटा, वह स्थानस्थान से मांस नोंचने लगा, पर वे प्रस्तर-प्रतिमा की तरह अचल खड़े थे, उन पर इन आघातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
संगम ने सिर धुना-महावीर भय एवं पीड़ा से आक्रान्त नहीं हो सकते, वे सर्वथा अभय, देह-संत्रास से मुक्त और मेरु से भी अधिक कठोर हैं । अपनी असफलता पर सिर धुनकर भी दुष्ट संगम ने हार नहीं मानी, उसने सोचा-भय की आग में पकने वाला घड़ा भी प्रेम व मोह की थपकियों से टूट सकता है। उसने जहरीले भय-भैरव वातावरण में सहसा स्नेह और मोह की मदिरा बिखेर दी । महावीर के समक्ष सिद्धार्थ और त्रिशला को करुण-विलाप करते हुये उपस्थित किया, किन्तु महावीर का ध्यान-भंग नहीं हुआ।
___ महावीर दोनों पर सीधे सटाये खड़े थे, संगम ने पैरों के बीच में आग रख दी और उन पर स्वयं रसोईया बनकर खाना पकाने लगा। ४ परन्तु आग में घासफूस भस्म हो सकता है, सोना तो तपकर अधिक निखार ही पायेगा। संगम अपने इस प्रयोग पर भी लज्जित हुआ, मगर उसका अहंकार नहीं टूटा।
उसने चंडालरूप धारण कर अनेक पक्षियों के पिंजरे महावीर के शरीर पर लटका दिये, पक्षियों की तीखी चोंच और नखप्रहार ने पुनः महावीर के शरीर को लह-लुहान कर डाला। और अब उटा भयंकर तूफान, तीखी तेज हवा, वर्षा की बूंदों का कपा देनेवाला प्रहार, वृक्षों को उखाड़ कर धराशायी कर देनेवाला पवनबेग, किन्तु महावीर तो अडोल, अचल बड़े रहे, खड़े रहे !
. हवा का गोल बवंडर उठा'", ऐसा लगा जैसे पहाड़ भी घूमने लग जायेंगे। महावीर का तन तो हवा में घूमता ही था, पर मन तो फिर भी अकम्पित. प्रशान्त !
__ और अंत में हार-थक कर संगम ने काल-बक्र का एक जबर्दस्त प्रहार महावीर पर किया। महावीर का शरीर घुटनों तक जमीन में धंस गया। पर तब भी उन्होंने आंखें नहीं टिमटिमाई ।
सिर खुजला-खुजला कर उपद्रवों का प्रकार सोचते हुए बाखिर संगम हार गया, उसे और कुछ नहीं सूझा तो एक विमान में बैठकर महावीर को पुकारने