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साधना के महापथ पर | ee उस सभा में संगम नाम का एक देव उपस्थित था, जो बहुत ही ईर्ष्यालु व अहंकारी था । उसने कहा-"देवराज के मुख से मनुष्य जैसे प्राणी की यह प्रशंसा शोभा नहीं देती, यह मिथ्यास्तुति सिर्फ श्रद्धातिरेक का प्रदर्शन है। मनुष्य में यह क्षमता है ही नहीं कि वह देवशक्ति के समक्ष टिक सके।"
देवराज संगम की चुनौती पर ऋद्ध तो हुये, फिर भी संयत स्वर में बोले"तुम्हारा अहंकार मिथ्या सिद्ध होगा, न कि मेरा कथन ।"
"-यदि आप हस्तक्षेप न करें तो मैं इसकी परीक्षा कर महावीर को ध्यानच्युत कर सकता हूँ"-संगम कुछ आवेश में आकर बोला । देवराज चुप रहे और संगम अपनी सम्पूर्ण शक्ति बटोर कर श्रमण महावीर की अग्निपरीक्षा लेने उसी रात्रि में पेढाल-उद्यान में पहुंच गया।
अचानक सांय-सांय की आवाज से दिशाएं कांप उठीं । भयंकर धल भरी आंधी से महावीर के शरीर पर मिट्टी के ढेर जम गये। आंख, नाक, कान और पूरा शरीर धूल से दब गया, पर, महावीर ने अपने निश्चय के अनुसार आँख की पलकें भी बन्द नहीं की।
आंधी शान्त हुई कि वज जैसे तीक्ष्ण मुंहवाली चींटियां चारों ओर से महावीर के शरीर को काटने लगीं। तन छलनी-सा हो गया, पर. महावीर का मन वन-सा दृढ़ रहा ।
तभी मच्छरों का झुंड महावीर के शरीर को काट-काट कर रक्त चूसने लगा; ऐसा हो गया मानो, किसी वृक्ष से रस चू रहा हो या पर्वत से रक्त के सरने बह रहे हों।
मच्छरों का उपद्रव शान्त नहीं हुआ कि दीमकें महावीर के पूरे शरीर पर लिपट गई और भयंकर दंश मारकर काटने लगीं।
फिर बिच्छुओं के तीव्र दंश-प्रहार", नेवलों द्वारा मांस नोचना', भीमकाय विषधर सर्पो द्वारा शरीर पर लिपटकर जगह-जगह दंश मारना और इसके बाद ती दांत वाले चहे काट-काट कर महायोगेश्वर को त्रास देने लगे ।
फिर जंगली हाथी ने दंतशूल से प्रहार कर महावीर को सूह में पकड़कर गेंद की तरह आकाश में उछाल दिया, पैरों के नीचे मिट्टी की भांति रौंद डाला', मत्त हपिनियों ने भी उसी प्रकार अपना क्रोध उड़ेल कर त्रास दिया' पर, तब भी महावीर अपनी अन्तश्चेतना में लीन रहे।
१ये बंक संगम द्वारा किये गये बीस उपसगों के सूचक है।