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साधना के महापय पर | १२१ महामात्य सुगुप्त, नन्दा, रानी मगावती बोर राजा शतानीक भी दौड़े आये । राजा के साथ कंचुकी नाम का एक दास भी था, जो पहले दधिवाहन राजा का सेवक था, शतानीक ने उसे गुलाम बनाकर रखा था पर उसकी सेवा से खुश होकर कुछ दिन पूर्व ही उसे मुक्त किया था।
हजारों नर-नारियों की भीड़ प्रभु का गुणगान कर रही थी, और दासी के भाग्य को भी सराह रही थी। तभी कंचुकी ने चन्दना को पहचान लिया, वह भीड़ को चीरता हुआ आगे बढ़ा-लोगों को डांटने लगा- तुम किसे दासी कह रहे हो? यह तो राजकुमारी वसुमतो है ! और वह उसके चरणों में गिरकर फूट-फूट कर रोने लग गया । कंचुकी को देखकर पुरानी स्मृतियां जग गई, और चन्दना की आंखों से भी अश्रुधारा बह निकली । वसुमती का नाम सुनते ही मृगावती ने उसे पहचान लिया, वह भी रोती-बिलखती आकर उससे लिपट गई । अब तो सारा वातावरण ही बदल गया । लोग जिसे बाजार में बिकी दासी समझ रहे थे, वह आज चम्पा की राजकुमारी के रूप में उनके समक्ष प्रस्तुत हुई तो विषाद, अफसोस और ग्लानि. मिश्रित चर्चाओं ने सबके हृदयों को झकझोर डाला।
शतानीक एवं मृगावती ने बार-बार चन्दना से क्षमा मांगी, उसे प्रेमाग्रहपूर्वक राजमहलों में चलने की विनती की-पर, चन्दना ने राजा-रानी के आग्रह को ठुकरा दिया- "जिस राज्य-लिप्सा ने हजारों निरपराध मनुष्यों का रक्त बहाया, सैकड़ों-हजारों रमणियों का सहाग लूटा और उन्हें दासता की बेड़ियों में जकड़ कर पशुजीवन जीने के लिए विवश किया, जिसे अपनी बहन के सुहाग की भी चिन्ता नहीं हुई, उस मौसी के जन-अभिशाप-ग्रस्त राजमहलों में जाकर मैं नहीं रह सकती। मैं तो उस महापुरुष के चरणों में ही आश्रय लूंगी, जिसने मेरी दुर्दशा को निमित्त बनाकर हजारों-हजार अभिशापग्रस्त नारियों और दुबल मनुष्यों को उबारने का प्रण किया, और स्वयं छह मास तक भूखे-प्यासे रहकर उनके उद्धार का वातावरण बनाया।"
कहना नहीं होगा कि भगवान् महावीर का यह घोर अभिग्रह केवल उनकी एक कठोर तपःसाधना का अंगमात्र बनकर ही नहीं रहा, अपितु इस अभिग्रह ने युग की हवा बदल दी। अभिशापग्रस्त नारीजाति के उद्धार और कल्याण का एक महान पथ प्रशस्त कर दिया। मातृजाति को दासता से मुक्ति दिलाने में मुक्ति के संदेशवाहक भगवान महावीर का यह अभि ग्रह एक ऐतिहासिक महत्त्व रखता है।'
१ (क) घटना वर्ष वि० पू० ५०० (साधना काल का बारहवां वर्ष)।