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जीवन का प्रथमचरण | ४७ समय पर एक पुत्री का जन्म हुआ, जिसका नाम प्रियदर्शना रखा गया। शिक्षा-दीक्षा पूर्ण करने के पश्चात् प्रियदर्शना का विवाह उसी नगर के क्षत्रिय कुमार जमालि से कर दिया गया । जमालि वर्धमान की बड़ी बहन सुदर्शना का पुत्र था। यह विवाह-सम्बन्ध वर्धमान के गृह-त्याग के पश्चात ही सम्पन्न हुआ ऐसा अनुमान किया जाता है, क्योंकि २८वें वर्ष में तो वर्धमान सांसारिक प्रवृत्तियों से निवृत्त होकर दो वर्ष तक एकान्त जीवन ही बिताते रहे और अठाईसवें वर्ष में पुत्री का विवाह हो जाना कम सम्भव लगता है। पर इतिहासकारों ने इस पर अपनी खोज-पूर्ण कलम नहीं चलाई, अतः निश्चित कुछ कह पाना कठिन है।
बाह्याभ्यन्तर व्यक्तित्व वर्धमान एक क्षत्रिय कुमार थे, इसलिये वे अत्यन्त बलिष्ठ, · सुन्दर एवं सुगठित शरीर वाले होगे-यह तो सहज ही कल्पना की जा सकती है। उनका शरीर सात हाथ ऊंचा था, उनकी आंख विकसित नील-कमल की भांति विशाल एवं सदा प्रफुल्लित रहती थीं। उनकी भुजाएं सुदीर्घ, मांसल एवं सुदृढ़ थीं। वे अतुल बल एवं पराक्रम तथा साहस के धनी थे। उनकी देह का वर्ण तपे हुये सोने की तरह तथा प्रज्वलित निधू म अग्निशिखा की भाँति गौर था। उनके दर्शन मात्र से ही मन प्रियता तथा भव्यता से उमग उठता था।' आगमों में उनके शारीरिक सौन्दर्य का जो संक्षिप्त वर्णन मिलता है, उससे पता चलता है कि उनका बाह्यव्यक्तित्व बड़ा ही प्रभावशाली एवं आकर्षक था ही, मगर उनका आन्तरिक व्यक्तित्व तो और भी प्रभावपूर्ण और अद्वितीय कहा जा सकता है। वे चिन्तनशील थे, मितभाषी थे। उनकी प्रतिभा बड़ी अनूठी थी. निरीक्षण शक्ति बड़ी अद्भुत । वर्तमान युग के मानव-शरीरविश्लेषक मनोवैज्ञानिकों की धारणा है कि-साधारण मनुष्य के मस्तिष्क को ज्ञान-कोशिकाएं (सेल्स) हजारों की संख्या में खली रहती हैं । तीव्र मेधावी व्यक्ति के यह सेल्स कई हजार व अधिक-से-अधिक कई लाख तक खुले रह सकते हैं। अनुमान है कि वर्धमान के मस्तिष्क में सात करोड़ से भी अधिक सेल्स खुले थे । इस विश्लेषण से यह धारणा और भी दृढ़ हो जाती है कि वर्धमान महावीर अपने युग के सर्वोत्कृष्ट प्रतिभासम्पन्न व मेघावी पुरुष थे। इसलिये उन्हें मेधावी', आशुप्रज्ञ और दीघंप्रज्ञ' जैसे
१ (क) भगवती सूत्र २।१।१४। (ख) औपपातिक० १। २ मेहावी, ३ आसुपन्ने, ४ दीहपन्न ।
-देखें सूत्रकृताङ्गसूत्र का वीरत्युह अध्ययन तथा बाचारांग १९ ।