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८२ | तीर्थंकर महावीर गौशालक की प्रार्थना का महावीर कोई उत्तर नहीं देते। चार मास यों ही निकल गये।
___ कार्तिक पूर्णिमा का दिन था। नगर में उत्सव मनाया जा रहा था। प्रभु ध्यान पूर्ण करके विहार करने को प्रस्तुत हुये, गौशालक उनसे बात करने की ताक में था ही, वह चट से उनके निकट आया और उनकी भविष्यज्ञान की परीक्षा करने के लिए पृछा "देवार्य ! मैं भिक्षा के लिये जा रहा है. बताइये, मुझे आज भिक्षा में क्या मिलेगा ?"
सहजभाव से प्रभु ने उत्तर दिया--"कोदों के बासी चावल, खट्टी छाछ और एक खोटा मिक्का।"
हैं !' आश्चर्य के साथ गौशालक ने महावीर की ओर देखा, फिर हमा"आज तो न्यौहार का दिन है, घर-घर में मिष्ठान्न बन रहे हैं, आज मुझे बासी चावल ? वाह ! क्या खूब भविष्यवाणी की है आपने !" गोशालक महावीर की भविष्यवाणी को अमत्य सिद्ध करने के लिये गया, किन्तु कहीं कुछ न मिला । मध्याह्न के बाद एक कर्मकार (कारीगर) ने उसे अपने घर कोदों का बासी धान और खट्टी छाछ का भोजन कराया तथा दक्षिणा में एक रुपया दिया, जो परखने पर सचमुच ही खोटा निकला।
इस घटना ने गौशालक के मन को आन्दोलित कर दिया। वह एक ओर महावीर के भविष्यज्ञान की ओर आकृष्ट हुआ तो दूसरी ओर नियतिवाद में उसका विश्वास भी दृढ़ हो गया। उसकी धारणा बन गई-'जो होना होता है, वह पहले से ही निश्चित रहता है, होनी कभी टलती नहीं।'
गौशालक मध्याह्न के बाद लौटकर अपने स्थान पर आया, देखा, तो श्रमण महावीर वहां नहीं थे। वह उनकी खोज करने पुन: बस्ती में गया, नालन्दा और राजगृह की गली-गली खोज डाली, पर महावीर नहीं मिले। उसने फिर भी पीछा नहीं छोड़ा। पास के कोल्लाकसन्निवेश में पहुंचा। वहाँ लोग चर्चा कर रहे थे "आज एक तपस्वी ने बहुल ब्राह्मण के घर पर भिक्षा ग्रहण की है, उसके दिव्य प्रभाव से आकाश में देवदु'दुभि बजी, और अनेक प्रकार के पुष्प, रत्न आदि की वृष्टि हुई।"
गौशालक ने सोचा- 'ऐसा दिव्य प्रभाव तो उन देवार्य का ही हो सकता है। वह नगर में आगे गया तो मार्ग में लौटते हुये श्रमण महावीर उसे मिल गये । गौशालक ने नमस्कार करके कहा-'भगवन् ! आपने जैसा कहा, आज वैसी ही भिक्षा मुझे मिली, वास्तव में आपकी भविष्यवाणी सच्ची निकली। अब मैंने आपको