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६८ | तीर्थंकर महावीर थे। जिन पर गिद्ध मंडराया करते थे। भूल एक प्रकार से प्रामवासियों की ही थी; किन्तु इस भूल का भयंकर परिणाम हजारों मनुष्यों की मृत्यु के रूप में आया ।"
महावीर को क्षणभर रुका देखकर गांव के एक वृद्ध पुरुष ने बताया"किसी समय में यह वर्धमान नाम का सुन्दर नगर था। इसके बाहर वेगवती नाम की नदी बहती थी। गर्मियों में नदी का पानी सूख जाता और गहरा कीचड़ हो जाता। एक बार धनदेव नाम का कोई व्यापारी पांच सौ गाड़ियां लेकर यहाँ आया। नदी पार करते समय उसकी गाड़ियाँ कीचड़ में फंस गई, बैल उन्हें खींच नहीं सके। तब व्यापारी ने बैलों को खोल दिया। उसके पास एक बैल था, बड़ा ही बलवान, पुष्ट स्कन्धोंवाला, सफेद हाथी जैसा। उस एक ही बैल ने धीरे-धीरे पांच सौ गाड़ियों को खींचकर किनारे लगा दिया। पर, इस अत्यधिक श्रम से बेल का दम टूट गया, उसके मुंह से रक्त वहने लगा, और वह भूमि पर गिर पड़ा। अनेक प्रयत्न करने पर भी बैल फिर से खड़ा नहीं हो सका। तब व्यापारी ने गांव के लोगों को बुलाया और वहाँ अधिक रुकने में अपनी असमर्थता जताकर बैल की सेवा-परिचर्या करने के लिए एक बड़ी धनराशि यहाँ दे गया ।
गांव के लोगों ने व्यापारी से बैल की सेवा के लिए धन तो ले लिया, पर बेचारे बैल की कभी किसी ने संभाल नहीं की। सारा धन हजम कर गये। उधर भूखे-प्यासे संतप्त बल ने एक दिन दम तोड़ दिया । वही बैल मरकर शूलपाणि यक्ष बना । गांव के लोगों द्वारा की गई अपनी दुर्दशा को देखकर वह ऋद्ध हो उठा, और महाकाल बनकर बरस पड़ा। उसने घर-घर में रोग, पीड़ा, त्रास एवं भय का आतंक फैला दिया। सैकड़ों प्राणी मृत्यु के मुख में जाने लगे। लोगों ने अनेकों देवयक्ष-असुर, गंधवं आदि की पूजा की; मगर गांव का आतंक नहीं मिटा। घबराकर लोग गांव छोड़कर भाग गये। तब भी उसने पिण्ड नहीं छोड़ा। वे पुनः गांव में लौटकर आये और नगर-देवता को बलि देकर सबने क्षमा मांगी 'हमारा अपराध क्षमा करिये ! हम आपकी शरण में हैं, जो कुछ भी हमारी भूल हुई है, उसे प्रकट कीजिये।"
तब यक्ष ने पूर्व-परिचय देकर, अपने साथ किये गये दुर्व्यवहार की बात कही और लोगों को खूब आड़े हाथों लिया। भय-ग्रस्त गांववासियों ने पुन:-पुनः क्षमा मांगी और उसकी पूजा की। यक्ष के कहे अनुसार उन्हीं हड्डियों के ढेर पर उसका यह चैत्य बनाया गया। यहां प्रतिदिन इसकी पूजा को जाती है।
___ इस घटना को सुनाते हुये भी गांववासी जहां भय से कांप रहे थे, वहाँ महावीर अभय को साक्षातमूर्ति बने प्रसन्नभाव से उसी यक्ष-मन्दिर में ठहरने की