________________
४० | तीर्थकर महावीर अनन्त सामर्थ्य का ज्ञान होते हुए भी मैंने उसकी अवमानना कर दी। क्षमा करें, प्रभु !" और फिर आनन्दपूर्वक सभी देवों ने जलाभिषेक कर शिशु को पुनः त्रिशला. देवी के पास लाकर सुला दिया।'
तीर्थकर आत्मा की अनन्तशक्ति का परिचय देने वाला यह बड़ा ही रोचक प्रसंग है। काव्यात्मक सौन्दर्य की बात छोड़ दें, तब भी यह तो ध्वनित होता ही है कि महापुरुप अपनी शक्ति का परिचय वचन से नहीं, किन्तु कर्म से ही देते हैं।
प्रातःकाल राजा सिद्धार्थ की ओर से नगर में पूत्रजन्म की बधाई बांटी गई। घर-घर में मिठाई तो बँटी ही, मंगलमय गीत गाये गये और हंसी-खुशी भी मनाई गई, पर इससे भी अधिक प्रसन्नता हुई उन जन्म-जात गुलामों को, कारावास में जीवन-बन्दी कैदियों को, ऋणभार से दबे दम तोड़ते गरीब व कर्जदारों को और धन के अभाव में भूखे-पेट फिरते दरिद्रों, भिखारियों तथा मजदूरों को, जिनके लिये राजा सिद्धार्थ ने पूरे राज्य में यह घोषणा करवा दी-"बन्दीगृहों से समस्त कैदियों को मुक्त कर दो, कर्जदारों को ऋणमुक्त कर दो, जिनके पास आवश्यक साधन न हों, वस्तु खरीदने के लिये धन न हो, वे बाजार से आवश्यक वस्तुएं खरीद लेवें, उनका भुगतान राजकोष से कर दिया जायेगा।"
यह विशेष ध्यान देने की बात है कि आनन्द व खुशी के प्रसंग पर मनुष्य अपने सम्बन्धियों, मित्रों एवं पड़ोसियों को मिठाई खिलायें, घर व मुहल्ले में चहलपहल कर दें, गाने-बजाने व आमोद-प्रमोद में धन को पानी की तरह बहा दें, यह एक सामान्य बात है, किन्तु उस प्रसंग पर गरीब, दरिद्र, ऋणी, रोगी और असहाय लोगों को याद कर उनकी पीड़ा को कम करें, उनके मन को भी एक बार प्रसन्नता से गुदगुदा दें, यह एक महत्व की बात है। महावीर जैसे महापुरुष के जन्म पर सिद्धार्थ जैसे धर्मप्रिय प्रजापालक राजा द्वारा ऐसी घोषणा होना वास्तव में एक नई सामाजिक दृष्टि है, मानव-कल्याण की भावना की एक सुन्दर झलक है, और है पुत्र-जन्म का सच्चा उत्सव । नामकरण
जन्म के बारहवें दिन राजा सिद्धार्थ ने एक विशाल प्रीतिभोज किया. अपने स्वजनों, मित्रों आदि को भोजन-पान से सत्कृत कर प्रसन्न किया, फिर सबको
१ मेरु-कंपन की घटना का उल्लेख मूल आगमों में नहीं, किन्तु उत्तरवर्ती श्वेताम्बर साहित्य में
एक स्वर से किया गया है। २ अंगूठे के स्पर्श से मेरुपर्वत को हिलाकर भ० महावीर ने यह भी व्यक्त कर दिया कि मेरे शरीरबल को मत देखो, आत्मबल को देखो। शरीरबल से अनन्तगुना बढ़कर आत्मबल है।