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जीवन का प्रथमचरण | ३३
वैशाली के उत्तरभाग में एक छोटा उपनगर था कुण्डपुर। यह दो भागों में बंटा था। उसके उत्तरभाग में ज्ञातृवंशी क्षत्रियों की बस्ती थी और दक्षिणभाग में ब्राह्मणों की। उत्तरीभाग क्षत्रिय कुण्डपुर कहलाता था। इस नगर के प्रशासक थे सिद्धार्थ क्षत्रिय । राजा सिद्धार्थ की रानी त्रिशलादेवी वैशाली गणाध्यक्ष चेटक की बहन थी। भारत-खण्ड के अनेक राजवंशों के साथ चेटक के घनिष्ट सम्बन्ध थे। बौद्ध अन्यों के अनुसार चेटक का ज्येष्ठ पुत्र सिंहभद्र (सिंह सेनापति) बज्जीगण का प्रधान सेनानायक था। चेटक की सात पुत्रियाँ थीं जिनमें चलना का विवाह मगध-नरेश बिम्बिसार (श्रेणिक) के साथ हुआ तथा शिवा का अवन्तीपति चन्द्रप्रद्योत के साथ । मृगावती का कौशाम्बी-नरेश शतानीक के साथ, पद्मावती का चंपा-पति दधिवाहन के साथ, प्रभावती का सिन्धु-सौवीर देश के राजा उदायन (उदाई) के साथ । इन सम्बन्धों को देखते हुए सहज ही अनुमान किया जा सकता है कि राजा सिद्धार्थ भी अपने युग के एक वीर व प्रतापी राजा थे और वैशाली गणतन्त्र में उनका अच्छा वर्चस्व था।
महावीर का जन्म : स्वप्नदर्शन आचारांग आदि जैन-आगमों एवं बौद्ध-साहित्य से यह पता चलता है कि महावीर के पूर्व मगध तथा वैशाली में निर्ग्रन्थ-धर्म (जैनधर्म) का अच्छा प्रचार था। स्वयं चेटक भगवान् पार्श्वनाथ के श्रद्धालु श्रमणोपासकों में गिने जाते थे। यह माना जाता है कि शाक्यपुत्र बुद्ध ने भी पार्श्वनाथ के चातुर्याम-धर्म में दीक्षा ली, साधना की और उस धर्म-परम्परा का उनके भावी धर्मप्रचार पर गहरा प्रभाव भी पड़ा। चातुर्याम धर्म को ही चार आर्य-सत्य के रूप में बुद्ध ने आगे जाकर नये परिवेश में प्रस्तुत किया; ऐसा भी माना जाता है । अस्तु ।
यह सर्वसम्मत सत्य है कि महावीर क्षत्रिय कुण्डपुर के राजा सिद्धार्थ के पुत्र एक राजकुमार थे, त्रिशलादेवी उनकी माता थी, किन्तु इसके पीछे एक पौराणिक सत्य और भी छिपा है कि महावीर पहले ब्राह्मण कुण्डपुर के विद्वान ब्राह्मण ऋषभदत्त की पत्नी देवानन्दा के गर्भ में आये ।' देवानन्दा ने उस समय चौदह महान शुभ स्वप्न देखे और अत्यन्त आनन्द-उल्लास मनाया। किन्तु कुछ दिनों के बाद देवानन्दा की खुशियाँ लुट गई। उसके शुभ स्वप्न लौट गये। ये महान स्वप्न उसी
१ आचारांग सूत्र श्रु० २ अ २४ । २ लगभग ८२ दिन बीतने के बाद ।