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कमल जल में उत्पन्न होकर भी जल-मल से सदा अलिप्त रहता है । अलिप्तता का यह नैसर्गिक गुण ही उसकी सहजस्वच्छता, मनोहारिणी-सुषमा और सतत-प्रफुल्लता का कारण है। साधक, जीवन के कर्मक्षेत्र में रहकर भी कर्म-वासना से निलिप्त रहता है। यह निलिप्तता बाहर से ओढ़ी हुई नहीं, किन्तु हृदय के अन्तराल से उद्भूत होती है । अतः सामान्यजन की भांति जीते हुये भी उसका जीवन-पट सदा स्वच्छ, सुन्दर और चिर नवीन रहता है। पर्वत शिखर पर चढ़ने वाले यात्री की भांति साधक के चरण भले ही धरती पर रहते हों, किन्तु उसकी दृष्टि शिखर के उच्चतम केन्द्र पर, क्षितिज की अन्तिम प्रकाश किरण तक पहुंचती है-उसी ध्येय से उसकी गति बंधी रहती है। वर्धमान का गृह-जीवन उस कमल की भांति, पर्वतशिखर पर चढ़ने वाले यात्री की भांति सदा निलिप्त, सतत जागृत और उच्चतम ध्येय के प्रति केन्द्रित तथा गतिशील रहा है।