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३० | तीर्थकर महावीर
(३) पुरुष, प्रकृति के हाथ का खिलौना मात्र नहीं है, किन्तु प्रयत्न, पुरुषार्थ एवं उद्योग करके वह स्वयं के जीवन का, अपने भविष्य का सुन्दरतम निर्माण स्वयं कर सकता है । क्षुद्र से महान और सामान्य जन से जिन के सर्वोत्तम पद को वह प्राप्त कर सकता है।
भगवान महावीर के पूर्वभवों की घटनाएं इन तीन दृष्टियों को स्पष्ट करती है, हमारी उक्त आस्थाओं को दृढ़ धारणा का रूप देती है और हमें अपने जीवन को पुरुषार्थ की धुरी पर चलाने की प्रेरणा देती है । अस्तु ।
भगवान महावीर का जीवन इतना घटनाबहल नहीं है, जितना कि उनके समकालीन तथागत बुद्ध का । उनके जीवन का परिचय देने वाली घटनाएं उपलब्ध साहित्य में बहुत कम अंकित हुई हैं । वे एक राजकुमार थे, स्वभावत: ही शोर्य एवं तेजस् उनकी भुजाओं में लहराता था, तत्कालीन राजनीति, समाज एवं धर्म के प्रति उनका चिन्तन बड़ा सूक्ष्म और क्रान्तिकारी था। तीस वर्ष तक एक राज-परिवार के बीच रहे । लगभग साढ़े बारह वर्ष तक साधना करते रहे और अन्तिम तीस वर्षों में तीर्थंकररूप में धर्मोपदेश देते हुये जनपद में विचरते रहे। इस तरह लगभग ७२ वर्ष के जीवनकाल में बहुविध घटनाएँ अवश्य घटी होंगी, किन्तु उनका लेखा जोखा वर्तमान साहित्य में बिखरा-बिखरा और साधारणरूप में ही प्राप्त होता है । कुछ चिन्तक यह भी सोचते हैं कि महावीर मूलतः निवृत्तिप्रिय साधक थे, घटनाएं प्रवृत्ति-बहुल जीवन की सूचक हैं । अत: उनका जीवन, घटनाओं एवं प्रसंगों की दृष्टि से उतना व्यापक नहीं हो सकता, जितना कि चिन्तन एवं साधना की दृष्टि से । कुछ भी हो, जो घटनाएं एवं प्रसंग मिलते हैं, उनमें महावीर का महावीरत्व, दयालुता, कष्टसहिष्णुता, निस्पृहता, वीतरागता और ध्येय के प्रति अडिग निष्ठा एवं अविचल साधना का रोमांचकारी वर्णन पद-पद पर दृष्टिगोचर होता है।
जन्मकालीन स्थितियाँ भगवान महावीर का जन्म ईसा से लगभग छ: सौ वर्ष (५६९ वर्ष) पूर्व भारत के पूर्वाचल में हुआ था। ईसा पूर्व की यह छठी शताब्दी विश्व के इतिहास में क्रान्तिकारी शताब्दी मानी गई है । डा० सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने लिखा है - "इस युग में सम्पूर्ण विश्व के चिन्तकों की चिन्तनधारा प्रकृति के अध्ययन की ओर से हटकर समाज और जीवन की समस्याओं की ओर मुड़ गई थी। इस युग में अनेक क्रान्तदृष्टा महापुरुष विश्व में हुये । भारत में बुद्ध और महावीर ने क्रान्ति का तुमुल