Book Title: Shatkhandagama Pustak 11
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, २, ५, .१०] वेयणमहाहियारे वेयणखेत्तविहाणे सामित्तं
कायलेस्सियाए लग्गो ॥ १० ॥
कायलेस्सिया णाम तदियो वादवलओ। कधं तस्स एसा सण्णा ? कागवण्णत्तादो सो कागलेरिसओ णाम । एत्थ अंधकायलेस्सों ण घेत्तव्वा, तत्थ अंधत्तवेण्णाणुवलंभादो। लोगवड्डिवसेण लोगनाडीदो परदो संखेज्जजोयणाणि ओसरिय द्विदतदियवादे लोगणालीए अब्भंतरट्ठिदमहामच्छो कधं लग्गदे ? सच्चमेदं महामच्छस्स तदियवादेण संपासो णत्थि त्ति । किंतु एसा सत्तमी सामीवे वदि । न च सप्तमी सामीप्ये असिद्धा, गंगायां घोषः प्रतिवसतीत्यत्र सामीप्ये सप्तम्युपलंभात् । तेण काउलेस्सियाए छुत्तदेसो काउलेस्सिया ति गहिदो । तीए काउलेस्सियाए जाव लग्गदि ताव वेयणासमुग्घादेण समुहदो त्ति उत्तं होदि। भावत्थो-पुव्ववेरियदेवेण महामच्छो सयंभुरमणवाहिरवेइयाए बाहिरे भागे लोगणालीए समीवे पादिदो । तत्थ तिव्ववेयणावसेण वेयणसमुग्घादेण समुहदों जाव लोगणालीए बाहिरपेरंतो लग्गो त्ति उत्तं होदि ।
जो तनुवातवलयस स्पृष्ट है ॥ १० ॥ काकलेश्याका अर्थ तीसरा वातवलय है। शंका-उसकी यह संशा कैसे है ?
समाधान----तनुवातवलयका काकके समान वर्ण होनेसे उसकी काकलेइया संशा है।
यहां अंधकाकलेश्या (काला स्याह काकवर्ण) का ग्रहण नहीं करना चाहिये, क्योंकि, उसमें अंधत्त्व अर्थात् काला स्याह वर्ण नहीं पाया जाता।
शंका- लोकनालीके भीतर स्थित महामत्स्य लोकविस्तारानुसार लोकनालीके आगे संख्यात योजन जाकर स्थित तृतीय वातवलयसे कैसे संसक्त होता है ?
समाधान-यह सत्य है कि महामत्स्यका तृतीय वातवलयसे स्पर्श नहीं होता, किन्तु यह सप्तमी विभक्ति सामीप्य अर्थमें है। यदि कहा जाय कि सामीप्य अर्थमें सप्तमी विभक्ति असिद्ध है, सो भी ठीक नहीं है; क्योंकि 'गंगामें घोष (ग्वालवसति) वसता है' यहां सामीप्य अर्थमें सप्तमी विभक्ति पायी जाती है। इसलिये कापोतलेश्यासे स्पृष्ट प्रदेश भी कापोतलेल्या रूपसे ग्रहण किया गया है । उस कापोतलेश्यासे जहां तक संसर्ग है वहां तक वेदनासमुद्घातसे समुद्घातको प्राप्त हुआ, यह उसका अभिप्राय है।
भावार्थ-पूर्वके वैरी किसी देवके द्वारा महामत्स्य स्वयम्भुरमण समुद्रकी बाह्य घेदिकाके बाहिर भागमें लोकनालीके समीप पटका गया। वहां तीव्र वेदनाके वश घेदनासमुद्धातसे समुद्घातको प्राप्त होकर लोकनालीके बाह्य भाग पर्यन्त वह संसक्त होता है, यह अभिप्राय है।
१ ताप्रती · अद्धकायलेस्सा' इति पाठः । २ ताप्रती ' अध्वत्त' इति पाठः । ३ ताप्रती 'समीवे' इति पाठः। ४ ताप्रती ' ण च सप्तमी सामीप्पे ' इति पाठः । ५ ताप्रती 'सप्तम्युपलंभादो' इति पाठः। १ प्रतिषु पुचीदो'; ताप्रती पुत्ती (पति) दो इति पाठः। ७ प्रतिषु 'समुग्धादो' इति पाठः ।
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