Book Title: Shatkhandagama Pustak 11
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 242
________________ १४ २, ६, ५२.] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे ठिदिबंधट्ठाणपरूवणा [२१७ पंचमखंडसव्वज्झवसाणढाणाणि असंखेजगुणाणि, जहण्णपरित्तासंखेजघणेण रूवाहियजहण्णपरितासंखेजसहिदजहण्णपरित्तासंखेजवग्गभहिएण जहण्णपरित्तासंखेजयस्स वग्गवग्गे भागे हिदे एगरूवस्स असंखेजदिभागेणब्भहियउक्कस्ससंखेजमेत्तरूवुवलंभादो। एत्थ वि कारणं पुव्वं व वत्तव्वं । एवमुवरिमसव्वखंडेसु एगरुवस्स असंखेजदिभागेणब्भहियउक्कस्ससंखेजमेत्तो गुणगारो वत्तव्यो। कुदो ? पुग्विल्लपरूवणाए उवरिमत्थपरूवणं पडि बीजीभूदत्तादो। उवरिमगुणगारो अण्णहा किण्ण जायदे ? ण, गुणहाणिअज्झवसाणहाणाणं दुगुणत्तण्णहाणुववत्तीदो । तेण हेट्ठिमसव्वखण्डज्झवसाणेहिंतो बादरेइंदियअपज्जत्तयस्य चरिमखंडज्झवसाणट्ठाणाणि णिच्छएण असंखेजगुणाणि होति त्ति सद्दहेयव्वं । उक्कस्ससंखेज्जादो सादिरेयस्स जहण्णपरित्तासंखेजादो किंचूणस्य एदस्य गुणगारस्स कधमसंखेज्जत्तं जुञ्जदे ? ण, उक्कस्ससंखेजमदिक्कंतस्य तदविरोहादो । दुगुणजहण्णपरित्तासंखेजछेदणयमेत्तगुणहाणीहि एगेगखंडपमाणं कादूण वा असंखेजगुणत्तं साधेदव्वं । बादरेइंदियअपजत्तयहिदिबंधट्ठणाणामसंखेजभागाणं संकिलेस-विसोहिहाणेहिंतो जदि उवरिमअसंखेजदिभागस्स संकिलेस-विसोहि चार खण्डोंके समस्त परिणामों की अपेक्षा पांचवें 'खण्डके सब परिणाम असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि एक अधिक जघन्य परीतासंख्यातसे सहित जघन्य परीतासंख्यातका जो वर्ग है उससे अधिक जघन्य परीतासंख्यातके घनका जघन्य परीतासंख्यातके वर्गके वर्गमें भाग देनेपर एक अंकके असंख्यातवें भागके साथ उत्कृष्ट संख्यात प्रमाण अंक प्राप्त होते हैं । यहाँपर भी पहिले के ही समान कारण बतलाना चाहिये । इसी प्रकार आगेके सब खण्डोंमें एक अंकके असंख्यातवें भागसे अधिक उत्कृष्ट संख्यात प्रमाण गुणकार जानना चाहिये, क्योंकि, आगेकी अर्थ-प्ररूपणाके प्रति पहिलेकी प्ररूपणा बीजभूत है। शंका-आगेका गुणकार अन्य प्रकार क्यों नहीं होता है ? समाधान नही, क्योंकि इसके बिना गुणहानियों के अध्यवसानस्थान दुगुणे बन नहीं सकते। इसीलिये अधस्तन सब खण्डोंके अध्यवसानस्थानोंकी अपेक्षा बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके अन्तिम खण्ड सम्बन्धी अध्यघसानस्थान निश्चयसे असंख्यातगुणे हैं, ऐसा श्रद्धान करना चाहिये। शंका–उत्कृष्ट संख्यातसे साधिक और जघन्य परीतासंख्यातसे कुछ कम इस गुणकारको ' असंख्यात' कहना कैसे उचित है ? समाधान नहीं, क्योंकि उत्कृष्ट संख्यातका अतिक्रमण कर जो कोई भी संख्या हो उसे ' असंख्यात' कहने में कोई विरोध नहीं । अथवा, दूने जघन्य परीतासंख्यातके अर्धच्छेदोंके बराबर गणहानियोंके द्वारा एक एक खण्ड प्रमाण करके असंख्यातगुणत्वको सिद्ध करना चाहिये । बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त सम्बन्धी स्थितिबन्धस्थानोंके असंख्यात - छ.११-२८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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