Book Title: Shatkhandagama Pustak 11
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 379
________________ ३५४] वखंडागमे वेयणाखंड [४, २, ६, २५५ संदिट्ठीए एत्थ गुणहाणिपमाणं चत्तारि ४ । एदं विरलेदूण जहण्णहिदिबंधज्झवसाणहाणाणि सोलस समखंडं कादूण दिण्णे विरलणरूवं पडि एगेगपक्खेवपमाणं पावदि । एत्य एगपक्खेवं घेत्तूण जहण्णहिदिबंधज्झवसाणहाणेसु पक्खित्ते बिदियट्ठिदिबंधज्झवसाणहाणाणि होति तिघेत्तव्वं । तदियाए [ ट्ठिदीए ] ट्ठिदिबंधज्झवसाणट्ठाणाणि विसेसाहियाणि ॥ २५५॥ केत्तियमेत्तेण १ एगपक्खेवमेत्तेण । एत्य जाव पढमगुणहाणिचरिमसमओ त्ति अवहिदो पक्खेवो । कुदो १ वविदएगेगपक्खेवाणं हिदिबंधज्झवसाणट्ठाणाणमेगेगरूवाहियगुणहाणिभागहारुवलंभादो। ___ एवं विसेसाहियाणि विसेसाहियाणि जाव उक्कस्सिया हिदि ति ॥ २५६ ॥ एवं सवहिदिबंधझवसाणट्ठाणाणि । अणंतराणंतरेण विसेसाहियकमेणं गच्छंति जाव उकस्सहिदिबंधज्झवसाणटाणे त्ति । णवरि गुणहाणि पडि पक्खेवो दुगुण-दुगुणो होदि । कुदो १ दुगुण-दुगुणक्कमेण हिदिगुणहाणिचरिमटिदिबंधज्झवसाणहाणाणमवहिदएगगुणहाणिभागहारदसणादो। समाघान-भागहार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है। अभिप्राय यह कि एकगुणहानिअध्वान भागहार है। यहां संदृष्टिमें गुणदानिका प्रमाण चार (४) है। इसका विरलन करके जघन्य स्थितिके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थानोंके प्रमाण सोलहको समखण्ड करके देनेपर एक एक विरलनरूपके ऊपर एक प्रक्षेपका प्रमाग प्राप्त होता है। यहां एक प्रक्षेपको ग्रहण करके जघन्य स्थितिबन्धाध्यवसानस्थानों में मिलानेपर द्वितीय स्थितिके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थानोंका प्रमाण होता है, ऐसा जानना चाहिये । तृतीय स्थितिके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान विशेष अधिक हैं ॥ २५५ ॥ कितने मात्रसे वे विशेष अधिक हैं ? एक प्रक्षेपके प्रमाणसे वे विशेष अधिक हैं। यहां प्रथम गुणहानिके अन्तिम समय तक अवस्थित प्रक्षेप है, क्योंकि एक प्रक्षेपसे वृद्धिको प्राव हुए स्थितिबन्धावसानस्थानोंका उत्तरोत्तर एक एक अंकसे अधिक गुणहाणि भागहार पाया जाता है। ____ इस प्रकार वे उत्कृष्ट स्थितितक विशेष अधिक विशेष अधिक हैं ॥ २५६ ॥ इस प्रकार सब स्थितियोंके अध्यवसानस्थान अनन्तर-अनन्तर क्रमसे उत्कृष्ट स्थितिके स्थितिबन्धाध्यघसानस्थानोंतक उत्तरोत्तर विशेष अधिक होते गये हैं। विशेष इतना है कि प्रक्षेप प्रत्येक गुगहानिके अनुसार दूना दना होता गया है। कारण कि दूने दने क्रमसे स्थित गुणहानियोंमें अन्तिम स्थिति के स्थितिबन्धाध्यवसानस्थानोंका अवस्थित एक गुणहानि भागहार देखा जाता है। १ ताप्रती 'अयहिदो । कुदो' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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