Book Title: Shatkhandagama Pustak 11
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 391
________________ ३६६ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [ ४, २, ६, २७१. संपहि अपुणरूत्तज्झवसाणपरूवणा कीरदे । तं जहा- जहणट्ठिदिमादिं कादूण जाव दुरिमट्ठिदित्ति ताव सव्वट्ठिदिविसेसेसव्वज्झवसाणाणं सव्वपढमखंडाणि अपुणरूत्ताणि । उक्कस्सट्ठिदीए सव्वखंडाणि अपुणरुताणि चेव । सेस - दुरिमादिट्ठिदीणं बिदियादिखंडाणि पुणरूत्ताणि, एहि समाणपरिणामाणमपुणरूत्तपरिणामेसु उवलंभादो । एवं सत्तणं कम्माणं ॥ २७१ ॥ जहा णाणावरणीसस्स अणुकट्ठी परूविदा तहा सत्तण्णं कम्माणं परूवेदव्वं । णवरि आउअस्स जहणहिदी णिव्वग्गणमेत्तअज्झवसाणखंडाणि पुव्वं व पढमखंडप्पहुडि विसेसाहियाण होंति । समउत्तरजहण्णट्ठिदि पहुडिसव्वज्झवसाणखंडाणि अण्णोष्णं पेक्खिदूण जहाकमेण विसेंसाहियाणि चेव । किंतु तत्थ समयाहियजहण्णहिदीए दुचरिमखंडादो चरिमखंडमायामेण असंखेज्जगुणं । तदुवरिमट्ठिदीए पुण तिचरिमखंडादो दुरिमखंडमसंखेजगुणं । तदो चरिमखंडमसंखेज्जगुणं । एवं दव्वं जाव णिव्वग्गणकंदयदुचरिमसमओ त्ति । पुणो तदुवरिमट्ठिदिप्पहुडि जाव उक्कस्सट्ठिदित्ति ताव सव्वखंडाणि अण्णोष्णं पेक्खिदूण आयामेण असंखेज्जगुणाणि होंति त्ति घेत्तव्वं । एत्थ वि अणुकट्ठिवोच्छेदो पुव्वं व परूवेदव्वो । एवमणुकट्ठी समत्ता । तिब्व-मंददाए णाणावरणीयस्स जहण्णियाए हिदीए जहण्णयं अब अपुनरुक्त अध्यवसानोंकी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है - जघन्य स्थितिको आदि लेकर द्विचरम स्थिति तक सब स्थितिविशेषोंके सभी अध्यवसानस्थान सम्बन्धी सब प्रथम खण्ड अपुनरुक्त हैं । उत्कृष्ट स्थितिके सब खण्ड अपुनरुक्त ही हैं । शेष द्विवरम आदि स्थितियोंके द्वितीयादिक खण्ड पुनरुक्त हैं, क्योंकि, इनके समान परिणाम अपुनरुक्त परिणामोंमें पाये जाते हैं । इसी प्रकार शेष सात कर्मोंके विषयमें अनुकृष्टिका कथन करना चाहिये ॥ २७९ ॥ जिस प्रकार ज्ञानावरणीयके विषय में अनुकृष्टिकी प्ररूपणा की है, उसी प्रकार अन्य सात कर्मोंके सम्बन्धमें अनुकृष्टिकी प्ररूपणा करना चाहिये । विशेष इतना है कि आयुकी जघन्य स्थितिके निर्वर्गणाकाण्डक प्रमाण अध्यवसानखण्ड पूर्वके ही समान प्रथम खण्डको आदि लेकर उत्तरोत्तर विशेष अधिक होते हैं। एक समय अधिक जघन्य स्थितिको आदि लेकर सब अध्यवसानखण्ड परस्परकी अपेक्षा यथाक्रमले विशेष अधिक ही हैं। परन्तु उनमें एक समय अधिक जघन्य स्थितिके द्विचरम खण्डले अन्तिम खण्ड आयामकी अपेक्षा असंख्यातगुणा है। उससे आगेकी स्थितिके त्रिचरम खण्डकी अपेक्षा द्विचरम खण्ड असंख्यात गुणा । उससे अन्तिम खण्ड असंख्यातगुणा है । इस प्रकार निर्वर्गेणाकाण्डक द्विचरम समय तक ले जाना चाहिये । फिर उससे आगेकी स्थिति से लेकर उत्कृष्ट स्थिति तक सब खण्ड एक दूसरेकी अपेक्षा आयामसे असंख्यात गुणे होते हैं, ऐसा समझना चाहिये। यहां भी अनुकृष्टिके व्युच्छेदकी पूर्वके ही समान प्ररूपणा करना चाहिये । इस प्रकार अनुकुष्टिका कथन समाप्त हुआ । तीव्र - मन्दताकी अपेक्षा ज्ञानावरणीयकी जघन्य स्थिति सम्बन्धी जघन्य स्थिति१ ताप्रतौ ' सव्वट्ठिदिविसेसस्स ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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