Book Title: Shatkhandagama Pustak 11
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 389
________________ ३६४] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ६, २७०. द्विदिवंधज्ज्ञवसाणट्ठाणाणि ताणि च बिदियाए हिदीए द्विदिबंधज्झवसाणहाणाणि होति, अपुष्वाणि च । कधमपुव्वाणं संभवो ? ण, बिदियट्ठिदीए हिदिबंधज्झवसाणट्ठाणचरिमखंडज्झवसाणहाणाणं धुवहिदिअज्झवसाणेसु अभावादो । ण च जहण्णटिदिसव्वज्झवसाणाणि विदियट्ठिदिअज्झवसाणट्ठाणेसु अत्थि, जहण्णट्ठिदिपढमखंडज्झवसाणहाणाणं बिदियटिदिअज्झवसाणहाणेसु अणुवलंभादो। जाणि बिदियाए हिदीए हिदिबंधज्झवसाणहाणाणि ताणि तदियाए हिदीए हिदिबंधज्झवसाणहाणेसु होति ति ण घेत्तव्यं, पढमखंडज्झवसाणहाणाणं तदियट्टिदिअज्झवसाणहाणेसु अणुवलंभादो । कधमेदं णव्वदे १ ताणि सव्वाणि होति ति णिदेसाभावादो। अपुव्वाणि ति वुत्ते अपुव्वाणि चेव वत्तव्वं, च-सद्देण विणासमुच्चयावगमाभावादो । जदि एवं तो सुत्ते च-सद्दो किण्ण परूविदो ? ण, च-सद्दणिद्देसेणे विणा वि तदहावगमादो । एवमपुव्वाणि अपुव्वाणि जाव उक्कस्सिया हिदि ति ॥२७॥ हैं वे भी स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान द्वितीय स्थितिमें हैं, तथा अपूर्व भी स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान हैं। शंका-अपूर्व स्थितिबन्धाध्यवसानस्थानोंकी सम्भावना कैसे है ? . समाधान नहीं, क्योंकि द्वितीय स्थितिके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थानोंके अन्तिम खण्ड सम्बन्धी अध्यवसानस्थान ध्रुवस्थितिके अध्यवसानस्थानों में नहीं हैं, तथा जघन्य स्थितिके सब अध्यवसानस्थान द्वितीय स्थितिके अध्यवसानस्थानोंमें नहीं हैं; कारण कि जघन्य स्थितिसम्बन्धी प्रथम खण्डके अध्यवसानस्थान द्वितीय स्थितिके अध्यवसानस्थानों में नहीं पाये जाते हैं । जो स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान द्वितीय स्थितिमें हैं वे तृतीय स्थितिके अध्यवसानोंमें होते हैं, ऐसा नहीं ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि द्वितीय स्थितिके प्रथम खण्ड सम्बन्धी अध्यवसानस्थान तृतीय स्थितिके अध्यघसानस्थानोंमें नहीं पाये जाते हैं। शंका-यह कैसे जाना जाता है ? समाधान-क्योंकि, "वे सभी होते हैं, ऐसा सूत्र में निर्देश नहीं किया गया है, इसीसे उसका ज्ञान हो जाता है। सूत्र में जो ' अपुवाणि' ऐसा निर्देश किया है उससे 'अपुब्वाणि चेव' अर्थात् अपूर्व भी होते हैं, ऐसा कथन करना चाहिये, क्योंकि, च शब्दके विना समुच्चयका ज्ञान नहीं होता है। शंका-यदि ऐसा है तो सूत्रमें च शब्दका निर्देश क्यों नही किया ? समाधान नहीं, क्योंकि च शब्दके निर्देशके विना भी उक्त अर्थका शान हो जाता है। इस प्रकार उत्कृष्ट स्थिति तक अपूर्व अपूर्व स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान होते हैं ॥२७॥ १ अ-काप्रत्योः '-णिद्देसोण ' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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