Book Title: Shatkhandagama Pustak 11
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 390
________________ ४, २, ६, २७०.] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे ट्ठिदिवधज्झवसाणपरूवणा . [३६५ . एवं उत्तविधाणेण अपुव्वाणि अपुव्वाणि चेव डिदिबंधज्झवसाणहाणाणि सव्वद्विदिविसेसेसु होदूण गच्छंति जाव उक्कस्सहिदि त्ति । सवहिदिविसेसेसु पुवहिदिबंधज्झवसाणहाणाणि वि अस्थि, ताणि च अभणिदूण अपुव्वाणि चेव अत्थि त्ति किमडं वुच्चदे ? ण, एवमिदि वयणादो चेव पुव्वाणं अथित्तसिद्धीदो । एवं वयणादो चेव पुवाणं पि अत्थित्तसिद्धीए संतीए अपुव्वाणं णिद्देसो किमर्से कदो? ण, अपुव्वपरिणामअत्थित्तपओजणत्तेण तप्पदुप्पायणे दोसाभावादो। जहण्णहिदीए पढमखंडं उवरि केण वि सरिसं ण होदि । बिदियखंडं समउत्तरजहण्णहिदीए पढमझवसाणखंडेण सरिसं । तदियखंडं दुसमउत्तरजहण्णट्ठिदीए पढमखंडेण सरिसं । चउत्थखंडं तिसमउत्तरजहण्णहिदीए पढमखंडेण सरिसं । एवं णेयव्वं जाव णिव्वग्गणकंदयचरिमसमओ त्ति । तदो उवरिमसमए जहण्णहिदिअज्झवसाणाणमणुकाठी वोच्छिन्नदि, तत्य एदेहि सरिसपरिणामाभावादो। एवं सवहिदिविसेससव्वझवसाणाणे पादेकमणुकहिवोच्छेदो परवेदव्यो ति भावत्यो । इस प्रकार उक्त प्रक्रियासे उत्कृष्ट स्थितितक सब स्थितिविशेषोंमें होकर अपूर्व ही अपूर्ण स्थितिबन्धाभ्यवसानस्थान होते जाते हैं। शंका-सब स्थितिविशेषों में जब पूर्व स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान भी हैं, तब उन्हें न कहकर ' अपूर्व ही हैं ' ऐसा किसलिये कहा जाता है ? समाधान -नहीं, क्योंकि 'एवं' अर्थात् ' इसी प्रकार' ऐसा कहनेसे ही पूर्व स्थितिबन्धाभ्यवसानस्थानोंका अस्तित्व सिद्ध हो जाता है। __ शंका-यदि ' एवं ' पदका निर्देश करनेस ही पूर्ष स्थितिबन्धाध्यवसानस्थानोंका अस्तित्व सिद्ध हो जाता है, तो फिर अपूर्व स्थितिबन्धाध्यवसानस्थानोंका निर्देश किसलिये किया गया है? __ समाधान नहीं, क्योंकि यहां अपूर्व परिणामोंके अस्तित्वका प्रयोजन होनेसे अके कहने में कोई दोष नहीं है। जघन्य स्थितिका प्रथम खण्ड आगे किसीके भी सदृश नहीं है। उसका द्वितीय खण्ड एक समय अधिक जघन्य स्थितिके प्रथम अध्यवसानखण्डके सदृश होता है। जघन्य स्थितिके अध्यवसानोंका तृतीय खण्ड दो समय अधिक जघन्य स्थितिके प्रथम अध्भवसानखण्डके सरश होता है। चतुर्थ स्खण्ड तीन समय अधिक जघन्य स्थितिक प्रथम अध्यवसानखण्डके सहश होता है। इस प्रकार निर्वर्गणाकाण्डकके अन्तिम समय तक ले जाना चाहिये। उससे बाजेके समयमें जघन्य स्थितिके अध्यवसानस्थानों अनुकृष्टिका व्युच्छेद हो जाता है, क्योंकि, वहां इनके सदृश परिणामोंका अभाव है। इस प्रकारले सब स्थितिविशेषोंके सब अध्यबसानोंमेसे प्रत्येको अनुकृष्टिके. व्युच्छेदकी प्ररूपणा करना चाहिये । यह उक्त कथनका भावार्थ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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