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४, ४, ६, २६६. ] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे ट्ठिदिबंधज्झवसाणपरूवणा [३५७
कुदो ? णाणागुणहाणिसलागाहि पलिदोवमस्स असंखेजदिभागमेत्ताहि संखेजपलिदोवमेसु भागे हिदेसु असंखेजपलिदोवमपढमवग्गमूलुवलंभादो । एवमेदेण सुत्तेण एगगुणहाणिअद्वाणपमाणं परूविदं । णाणागुणहाणिसलागाणं पमाणपरूवणट्टमुत्तरसुत्तं भणदि
__णाणाद्विदिबंधज्झवसाणदुगुणवड्ढि-हाणिट्ठाणंतराणि अंगुलवग्गमूलछेदणाणामसंखेज्जदिभागो' ॥ २६५ ॥
____ अंगुलवग्गमूलमिदि वुत्ते सूचीअंगुलपढमवग्गमूलं घेत्तव्वं । तस्स अद्धछेदणाणं असंखेजदिभागमेत्ताओ णाणागुणहाणिसलागाओ होति । होताओ वि मोहणीयहिदिपदेसणाणागुणहाणिसलागाहिंतो थोवाओ, ताणिं पलिदोवमेवग्गमूलस्स असंखेजदिभागमेत्ताओ त्ति पमाणमभणिदूण अंगुलवग्गमूलच्छेदणाणं असंखेजदिभागो त्ति परविदत्तादो । होताओ वि असंखेजगुणहीणाओ पुव्वं विहजमाणरासीदो संपहि विहज्जमाणरासीए असंखेजगुणहीणत्तादो।
___णाणाठिदिबंधज्झवसाणदुगुणवड्ढि-हाणिट्ठाणंतराणि थोवाणि ॥ २६६॥
कारण कि पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र नानागुणहानिशलाकाओंका संख्यात पल्योपमोंमें भाग देनेपर पल्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूल लब्ध होते हैं । इस प्रकार इस सूत्रके द्वारा एक गुणहानिअध्वानके प्रमाणकी प्ररूपणा की गई है। नानागुणहानिशलाकाओंके प्रमाणकी प्ररूपणाके लिये आगेका सूत्र कहते हैं
नानास्थितिबन्धाध्यवसानों सम्बन्धी दुगुण-दुगुणवृद्धि-हानिस्थानान्तर अंगुलसम्बन्धी वर्गमूलके अर्धच्छेदोंके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं ॥ २६५॥
'अंगुलवर्गमूल' ऐसा कहनेपर सूचीअंगुलके प्रथम वर्गमूलको ग्रहण करना चाहिये । उसके अर्धच्छेदोंके असंख्यातवें भाग प्रमाण नानागुणहानिशलाकायें होती हैं। इतनी होकरके भी मोहनीय कर्मके स्थितिप्रदेशोंकी नानागुणहानिशलाकाओंसे स्तोक हैं, क्योंकि, 'वे पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं' ऐसा उनका प्रमाण न बतलाकर 'वे अंगुलके वर्गमूलसम्बन्धी अर्धच्छेदोंके संख्यातवें भाग हैं ' ऐसी प्ररूपणा की गई है। असंख्यातगुणी हीन होती हुई भी पूर्व में विभज्यमान राशिसे इस समयकी विभज्यमान राशि असंख्यातगुणी हीन है।
नानास्थितिबन्धाध्यवसानदुगुणवृद्धिहानिस्थानान्तर स्तोक हैं ॥ २६६ ॥ . नाणंतराणि अंगुलमूलच्छेयणमसंखतमो ॥ क. प्र. १,८८., नानाद्विगुणवृद्धिस्थानानि चांगुलवर्गमलच्छेदनकासंख्येयतमभागप्रमाणाणि । एतदुक्तं भवति-अंगुलमात्रक्षेत्रगतप्रदेशराशेर्यत्प्रथमं वर्गमलं तन्मनुष्य प्रमाणहेतुराशिषण्णवतिच्छेदनविधिना तावच्छिद्यते यावद् भागं न प्रयच्छति । तेषां च छेदनकानामसंख्येयतमे भागे यावन्ति छेदनकानि तावत्सु यावानाकाशप्रदेशराशिस्तावत्प्रमाणानि नानाद्विगुणस्थानानि भवन्ति (म.टी.)। २ अ-आ-काप्रतिषु 'तासिव पलिदोवम- इति पाठः। . ..
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