Book Title: Shatkhandagama Pustak 11
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 385
________________ .३६० . छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ६, २६८. तसिमहिप्पाएण भागहारो वुच्चदे--अंतोमुहुत्तूणतेत्तीससागरोवमाणि गच्छं कादूण “ अर्द्ध शून्य रूपेषु गुणम्" इति गणितन्यायेन जं लद्धं तं ठविय “रूपोनमादिसंगुणमेकोणगुणोन्मथितमिच्छा " एदेण सुत्तेण रूवणं काऊण असंखेजलोगमेत्तआदिणा गुणिय रूवूणगुणगारेण आवलियाए असंखेजदिभागेण भागे हिदे सव्वझवसाणपमाणं होदि । एदम्मि जहण्णट्ठिदिज्झवसाणपमाणेणोवट्टिदे असंखेज्जा लोगा लभंति । तेण जहण्णहिदिअज्झवसाणपमाणेण अवहिरिजमाणे सव्वझवसाणहाणाणि असंखेजलोगमेत्तकालेण अवहिरिजंति । एवं उवरिमहिदिअज्झवसाणाणं पि असंखेजलोगभागहारो वत्तव्यो । णवरि सव्वत्थ एसो चेव भागहारो होदि ति णियमो णत्थि, कत्थ वि घणलोग-जगपदर-सेडि-सागर-पल्ल-आवलियातदसंखेजदिभागमेत्तभागहारुवलंभादो । उक्कस्सहिदिअज्झवसाणपमाणेण सव्वज्झवसाणाणि सादिरेगएगरूवपमाणेण अवहिरिजति । एत्थ कारणं जाणिदूण वत्तव्वं । एवं भागहारपरूवणा समत्ता। ___ जहणियाए हिदीए अज्झवसाणहाणाणि सव्वहिदिअज्झवसाणहाणाणं केवडिओ भागो ? असंखेजदिभागो । को पडिभागो ? असंखेज्जाणि गुणहाणिहाणंतराणि । एवं णेदव्वं जाव उक्करसहिदिअज्झवसाणट्ठाणे ति । एवं छण्णं कम्माणं । आउअस्स वि एवं अपहृत होते हैं । यथा-आयु कर्मके अध्यवसानोंका गुणकार अवस्थित है, ऐसा कितने ही आचार्य कहते हैं । उनके अभिप्रायसे भागहारका कथन करते हैं-अन्तर्मुहूर्त कम तेतीस सागरोपमोंको गच्छ करके " अर्द्ध शून्यं रूपेणु गुणम्" इस गणितन्यायसे जो लब्ध हो उसको स्थापित करके 'रूपोनमादिसंगुणमेकोनगुणोन्मथितमिच्छा' इस सूत्रके अनुसार एक रूप कम करके असंख्यात लोक मात्र आदिसे गुणितकर एक अंकसे रहित आवलिके असंख्यातवें भाग मात्र गुणकारका भाग देनेपर सब अध्यवसानोंका प्रमाण होता है । इसमें जघन्य स्थितिके अध्यवसानोंका जो प्रमाण हों उसका भाग देनेपर असंख्यात लोक लब्ध होते हैं । इसी कारण जघन्य स्थितिके अध्यवसानोंका जो प्रमाण है उससे सब अध्यवसानस्थानोंको अपहृत करनेपर वे असंख्यात लोक मात्र कालसे अपहृत होते हैं। इसी प्रकार आगेकी स्थितियोंके भी अध्यवसानस्थानोंका भागहार असंख्यात लोक मात्र कहना चाहिये । विशेष इतना है कि सभी जगह यही भागहार हो, ऐसा नियम नहीं है, क्योंकि, कहींपर घनलोक, जगप्रतर, जगश्रेणि, सागर, पल्य, आवलि और उनके असंख्यातवें भाग मात्र भागहार पाया जाता है। उत्कृष्ट स्थितिके अध्यवसानोंके प्रमाणसे सब अध्यवसान साधिक एक रूपके प्रमाणसे अपहृत होते हैं। यहां कारण जानकर बतलाना चाहिये। इस प्रकार भागहार प्ररूपणा समाप्त हुई। जघन्य स्थितिके अध्यवसानस्थान सब स्थितियोंके अध्यवसानस्थानोंके कितनेवें भाग प्रमाण हैं ? वे उनके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं । प्रतिभाग क्या है ? प्रतिभाग असंख्यात गुणहानिस्थानान्तर हैं । इस प्रकार, उत्कृष्ट स्थितिके अध्यवसानस्थानोंतक ले जाना चाहिये ? इसी प्रकार छह कमौके सम्बन्धमें भागाभागकी प्ररूपणा करना चाहिये। १ अप्रतौ 'परूवणं' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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