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छक्खंडागमे वेयणाखंडं . [४, २, ६, २६७. कुदो १ पलिदोवमपढमवग्गमूलस्स असंखेजदिभागपमाणत्तादो ।
एयढिदिबंधज्झवसाणदुगुणवढि-हाणिट्ठाणंतरमसंखेज्जगुणं ॥ २६७॥
कुदो ? असंखेजपलिदोवमपढमवग्गमूलपमाणत्तादो । कधमेदं णव्वदे ? णाणागुणहाणिसलागाहि कम्महिदीए ओवट्टिदाए एगगुणहाणिपमाणुवलंभादो।
एवं छण्णं कंम्माणमाउववज्जाणं ॥ २६८॥
जहा णाणावरणीयस्स परंपरोवणिधा परूविदा तहा छण्णं कम्माणं परवेदव्वं, क्सेिसाभावादो। आउअस्स एसा पवणा णत्थि, ठिदि पडि असंखेजगुणक्कमेण हिदिबंधज्झवसाणहाणाणं वड्डिदंसणादो।
___ संपहि सेडिपख्वणाए सूचिदाणं अवहार-भागाभाग-अप्पाबहुगाणं परवणं कस्सामो । तं जहा-जहणियाए हिदीए हिदिबंधज्झवसाणहाणपमाणेण सव्वढिदिबंधज्झवसाणहाणाणि केवचिरेण कालेण अवहिरिजंति ? असंखेजदिवड्डगुणहाणिहाणंतरेण कालेण अवहिरिजंति । तं जहा-उक्कस्सट्ठिदिबंधज्झवसाणहाणपमाणेण सव्वहिदिबंधज्झवसाणेसु कदेसु किंचूण
क्योंकि, वे पल्योपम सम्बन्धी प्रथम वर्गमूलके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं। एक स्थितिबन्धाध्यवसानदुगुणवृद्धिहानिस्थानान्तर असंख्यातगुणा है ॥ २६७ ॥ क्योंकि, वह पल्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूलोंके बराबर है। शंका- यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान--चूँकि कर्मस्थितिमें नानागुणहानिशलाकाओंका भाग देनेपर एक गुणहानिका प्रमाण लब्ध होता है, इसीसे जाना जाता है कि वह पल्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूलोंके बराबर है।
इसी प्रकार आयुको छोड़कर छह कर्मोकी प्ररूपणा करना चाहिये ॥ २६८॥ जिस प्रकार ज्ञानावरणीयकी परम्परोपनिधाकी प्ररूपणा की गई है, उसी प्रकार छह काँकी परम्परोपनिधाकी भी प्ररूपणा करना चाहिये, क्योंकि, उसमें कोई विशेषता नहीं है। आयु कर्मके सम्बन्धमें यह प्ररूपणा लागू नहीं होती, क्योंकि, उसके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थानोंके प्रत्येक स्थितिके अनुसार असंख्यातगुणितक्रमसे वृद्धि देखी जाती है। ___ अब श्रेणिप्ररूपणाके द्वारा सूचित अवहार, भागाभाग और अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा करते हैं । यथा-जघन्य स्थितिके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थानोंके प्रमाणसे सब स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान कितने कालके द्वारा अपहृत होते हैं ? उक्त प्रमाणसे वे असंख्यात डेढ गुणहानिस्थानान्तरकालके द्वारा अपहृत होते हैं । यथा-सब स्थितिबन्धाध्यवसानस्थानोंको उत्कृष्ट स्थितिबन्धाध्यवसानस्थानोंके प्रमाणसे करनेपर वे कुछ कम डेढ गुणहानि प्रमाण होते हैं। वहां संदृष्टिमें सब अध्यवसानस्थानोंका प्रमाण
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