Book Title: Shatkhandagama Pustak 11
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 381
________________ ३५६] छक्खंडागमे वेयणाखंडं [४, २, ६, २६१. - एवमसंखेजगुणाणि असंखेज्जगुणाणि जाव उक्कसिया हिदि ति ॥ २६१ ॥ एवं ठिदि पडि हिदि पडि आवलियाए असंखेजदिभागगुणगारेण सव्वढिदिबंधज्झवसाणटाणाणि णेदव्वाणि जाव उक्कस्सटिदि त्ति । एवमणंतरोवणिधा समत्ता। परंपरोवणिधाए णाणावरणीयस्स जहणियाए हिदीए द्विदिबंधज्झवसाणट्ठाणेहिंतो तदो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागं गंतृण दुगुणवढिदा ॥ २६२ ॥ • कुदो ? विरलणमेत्तपक्खेवेसु जहण्णद्विदिबंधज्झवसाणट्ठाणेसु वडिदेसु दुगुणझवसाणट्ठाणसमुप्पत्तीदो। - एवं दुगुणवड्ढिदा दुगुणवडूिढदा जाव उक्कस्सिया हिदि त्ति ॥ २६३ ॥ एवमवट्ठिदमेत्तियमद्धाणं गंवण सव्वदुगुणवडीओ उप्पजंति त्ति वत्तव्वं । एवं द्विदिबंधज्झवसाणदुगुणवढि-हाणिट्ठाणंतरं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागों ॥ २६४ ॥ इस प्रकार वे उत्कृष्ट स्थिति तक उत्तरोत्तर असंख्यातगुणे असंख्यातगुणे होते गये हैं ॥ २६१॥ '। इस प्रकार उत्कृष्ट स्थितितक एक एक स्थितिके प्रति सब स्थितिबन्धाध्यवसान स्थानोंकी आवलिके असंख्यातवें भाग गुणकारसे ले जाना चाहिये । इस प्रकार अनन्तरोपनिधा समाप्त हुई। .. परम्परोपनिधाकी अपेक्षा ज्ञानावरणीयकी जघन्य स्थितिके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थानोंकी अपेक्षा उनसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग जाकर वे दुगुणी वृद्धिको प्राप्त हैं ॥ २६२ ॥ .इसका कारण यह है कि जघन्य स्थितिके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थानों में विरलन राशिके बराबर प्रक्षेपोंकी वृद्धिके होनेपर दुगुणे अध्यवसानस्थानोंकी उत्पत्ति होती है। इस प्रकार वे उत्कृष्ट स्थिति तक दुगुणी दुगुणी वृद्धिको प्राप्त हुए हैं ॥ २६३॥ इस प्रकार इतना मात्र अध्वान जाकर सब दुगुणवृद्धियां उत्पन्न होती हैं, ऐसा कहना चाहिये। एक स्थितिसम्बन्धी अध्यवसानोंके दुगुण-दुगुणवृद्धिहानिस्थानोंके अन्तर पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं ॥ २६४ ॥ १अ-आ-का-प्रतिषु 'पयडि' इति पाठः। २ पल्लासंखियभागं गंतुं दुगुणाणि जाव उक्कोसा क.प्र. १,८८. । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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