________________
४, २, ६, २६०. ] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे द्विदिबंधज्झवसाणपरूवणा [ ३५१ एवं छण्ण कम्माणं ॥ २५७ ॥
जहा णाणावरणीयस्स अणंतरोवणिधा परूविदा तहा छण्णं कम्माणं आउववजाणं परूवेदव्वा, विसेसाहियत्तं पडि भेदाभावादो ।
आउअस्स जहणियाए हिदीए ट्ठिदिबंधज्झवसाणट्ठाणाणि थोवाणि ॥ २५८ ॥
कुदो ? आउअस्स असंखेज्जदिलोगमेत्तट्ठिदिवंधज्झवसाणद्वाणाणमसंखेज्जदिभागमेत्ताणं चैव जहणडिदिपाओग्गत्तादो ।
विदियाए द्विदीए हिदिबंधझवसाणाणाणि असंखेज्जगुणाणि ॥ २५९ ॥
को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । कुदो ? जहण्णट्ठिदिबंधकारणादो समउत्तरद्विदिबंधकारणाणं बहुत्तुवलंभादो ।
तदिया हिदी द्विदिबंधज्झवसाणट्टाणाणि असंखेज्ज - गुणाणि ॥ २६० ॥
को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । कारणं पुव्वं व वत्तव्वं ।
इसी प्रकार छह कर्मों की अनन्तरोपनिधाकी प्ररूपणा करना चाहिये ।। २५७ ॥
जिस प्रकार ज्ञानावरणीय कर्मको अनन्तरोपनिधाकी प्ररूपणा की गई है उसी प्रकार आयुको छोड़कर शेष छह कर्मोकी अनन्तरोपनिधा की प्ररूपणा करना चाहिये, क्योंकि, उसमें विशेष अधिकताकी अपेक्षा कोई भेद नहीं है ।
आयु कर्मकी जघन्य स्थितिमें स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान स्तोक हैं ॥ २५८ ॥
इसका कारण यह है कि आयु कर्मके असंख्यात लोक प्रमाण स्थितिबन्धाध्यवसानस्थानों में उनके असंख्यातवें भाग मात्र ही जघन्य स्थितिके योग्य हैं । -
द्वितीय स्थितिके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यातगुणे हैं ॥ २५९ ॥
गुणकार क्या है ? गुणकार आवलिका असंख्यातवां भाग है, क्योंकि, जघन्य स्थितिबन्धके कारणोंकी अपेक्षा एक एक समय अधिक स्थितिबन्धके कारण बहुत पाये जाते हैं ।
तृतीय स्थितिके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यातगुणे हैं ॥ २६० ॥
गुणकार क्या है ? गुणकार आवलिका असंख्यातवां भाग है । इसके कारणका कथन पहिलेके ही समान करना चाहिये ।
१ आऊणमसंखगुणवडी । आयुषां जघन्यस्थितेरारम्य प्रतिस्थितिबन्धमसंख्येयगुणवृद्धिर्वक्तव्या । तद्यथा – आयुषो जघन्य स्थितौ तदुबन्धहेतुभूता अध्यवसाया असंख्येयलोकाकाशप्रदेशप्रमाणाः । ते च सर्वस्तोकाः । ततो द्वितीयस्थितौ असंख्येयगुणाः । ततोऽपि तृतीयस्थितावसंख्येयगुणाः । एवं तावकान् यावदुत्कृष्टा स्थितिः । क. प्र. ( म. टी.) १,८७. ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org