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४, २, ६, १२२.] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे आबाधाकंडयपरूवणा [२६९ बीइंदियाणमट्टण्हं जीवसमासाणमाबाहट्ठाणाणि आबाहाकंदयसलगाओ च आवलियाए संखेजदिभागमेत्ताणि । चदुण्णमेइंदियाणं आबाहहाणाणि आबाहाकंदयाणि च आवलियाए असंखेजदिभागमेत्ताणि।
आउअस्स आबाहाकंदयपरूवणा किमट्ट ण कदा ? ण एस दोसो, आउअस्स इमा हिदी एदीए चेवे आबाहाए बज्झदि त्ति णियमाभावादो। पुवकोडितिभागमाबाहं काऊण तेत्तीसाउअंबंधदि, समऊणतेत्तीसं पि बंधदि, एवं दुसमऊण-तिसमऊणादिकमेण पुवकोडितिभागाबाहं धुवं कादृण णेदव्वं जाव बंधखुद्दाभवग्गहणं ति । पुणो एदे चेव आउवबंधवियप्पा पुवकोडितिभागे समऊणे आबाधत्तणेण णिरुद्धे वि होति । एवं दुसमऊणादिकमेण णेदव्वं जाव असंखेयद्धा त्ति.। जेणेवमणियमो तेण आउअस्स आबाहाकंदयपरूवणा ण कदा। ण च आबाहाकंदयाणि णत्यि त्ति आबाहहाणाणमसंभवो, तदभावे लिंगाभावादो । तदो आउअस्स णत्थि आबाहाकंदयाणि त्ति सिद्धं ।
इन आठ जीवसमासोंके आवाधास्थान और आबाधाकाण्डकशलाकायें आवलीके संख्यातवें भाग प्रमाण हैं । चार एकेन्द्रिय जीवोंके आबाधास्थान और आबाधाकाण्डक आवलीके असंख्यात भाग प्रमाण हैं।
शंका- यहां आयु कर्मके आवाधाकाण्डकोंकी प्ररूपणा किसलिये नहीं की गई ?
समाधान-यह कोई दोष नहीं है, कारण कि आयुकी यह स्थिति इसी आबाधामें बंधती है, ऐसा कोई नियम नहीं है। पूर्वकोटिके त्रिभागको आबाधा करके तेतीस सागरोपम प्रमाण आयुको बांधता है, एक समय कम तेतीस सागरोपम प्रमाण आयुको भी बांधता है। इस प्रकार पूर्वकोटिके त्रिभाग रूप आबाधाको ध्रुव करके दो समय कम, तीन समय कम इत्यादि क्रमसे बन्ध क्षुद्रभवग्रहण प्रमाण स्थिति तक ले जाना चाहिये। पूर्वकोटिके एक समय कम विभागको आबाधा रूपसे विवक्षित करने पर भी ये ही आयुबन्धके विकल्प होते हैं। इसी प्रकार दो समय कम, तीन समय कम इत्यादि क्रमसे असंख्येयाद्धा काल प्रमाण आबाधा तक ले जाना चाहिये । जिस कारण यहां कोई ऐसा नियम नहीं है, इसीलिये आयुके आवाधाकाण्डकोंकी प्ररूपणा नहीं की गई।
आबाधाकाण्डक चूंकि नहीं हैं, इसलिये आवाधास्थान असम्भव हों; ऐसी कोई बात नहीं है, क्योंकि, उनके अभावमें कोई हेतु-नहीं है । इस कारण आयुके आवाधाकाण्डक नहीं हैं, यह सिद्ध है।
... १ आप्रती ' असंखे०', ताप्रती ' असंखे० ' इति पाठः। २ ताप्रतौ 'इमा द्विदीए चेव' इति पाठः। ३ अ-आ-काप्रतिषु 'दुसमऊणा' इति पाठः। ४ अ-आ-ताप्रतिषु पुव्वकोडिभागे' इति पाठः। ५ ताप्रतो' दुसमयादि-इति पाठः।
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