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३१०] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, ६, १६५. बंधज्झवसाणहाणपवणत्तादो। हिदिबंधज्झवसाणट्ठाणाणि कसाउदयट्ठाणाणि ण होति त्ति कधं णव्वदे १ णामा-गोदाणं हिदिबंधज्झवसाणहाणेहिंतो चदुण्णं कम्माणं हिदिबंधज्झवसाणहाणाणि [ असंखेजगुणाणि त्ति अप्पाबहुगसुत्तादो । जदि पुण कसाउदयहाणाणि चेव हिदिबंधज्झवसाणहाणाणि ] होति तो णेदमप्पाबहुगं धडदे, कसायोदयहाणेण विणा मूलपयडिबंधाभावेण सव्वपयडिटिदिबंधज्झवसाणहाणाणं समाणत्तप्पसंगादो । तम्हा सव्वमूलपयडीणं सग-सगउदयादो समुप्पण्णपरिणामाणं सग-सगहिदिबंधकारणत्तेण हिदिबंधज्झवसाणहाणसण्णिदाणं एत्थ गहणं कायव्वं, अण्णहा उत्तदोसप्पसंगादो । एदेसिं हिदिबंधज्झवसाणट्ठाणाणं परवणमिमा बिदिया चूलिया आगदा । तत्य तिण्णि आणियोगद्दाराणि जीव-पयडि-द्विदिसमुदाहारभेदेण )तत्य जीवसमुदाहारो किमढे आगदो? सादासादाणं एक्वेकिस्से हिदीए एत्तिया जीवा होति ण होति त्ति जाणावण?मागदो। पयडिसमुदाहारो किमढमागदो ? एदिस्से पयडीए हिदिबंधज्झवसाणहाणाणि एत्तियाणि
____शंका-स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान कषायोदयस्थान नहीं हैं, यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान-नाम व गोत्रके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थानोंकी अपेक्षा चार कौके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यातगुणे हैं, इस अल्पबहुत्वसूत्रसे वह जाना जाता है। यदि कषायोदयस्थान ही स्थितिवन्धाध्यवसानस्थान हों तो यह अल्पबहुत्व घटित नहीं हो सकता है, क्योंकि, कषायोदयस्थानके विना मुल प्रकृतियोंका बन्ध न हो सकनेसे सभी मूल प्रकृतियोंके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थानोंकी समानताका प्रसंग आता है । अत एव सब मूल प्रकृतियोंके अपने अपने उदयसे जो परिणाम उत्पन्न होते हैं उनकी ही अपनी अपनी स्थितिके बन्धमें कारण होनेसे स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान संशा है। उनका ही ग्रहण यहाँ करना चाहिये, क्योंकि, अन्यथा पुनरुक्त दोषका प्रसंग आता है।
___ इन स्थितिबन्धाध्यवसानस्थानोंकी प्ररूपणाके लिये द्वितीय चूलिकाका अवतार हुआ है। उसमें तीन अनुयोगद्वार हैं-जीवसमुदाहार, प्रकृतिसमुदाहार और स्थितिसमुदाहार।
शंका-इनमें जीवसमुदाहार किसलिये आया है ?
समाधान साता व असाताकी एक एक स्थितिमें इतने जीव हैं व इतने नहीं है, इस बातके ज्ञापनार्थ जीवसमुदाहार प्राप्त हुआ है।
प्रकृतिसमुदाहार किसलिये आया है ? इस प्रकृतिके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान इतने होते हैं और इतने नहीं होते हैं, इस
१अ-आ-का-ताप्रतिष्वनुपलभ्यमानमिदं हेतुवचनं मप्रतितोऽत्र योजितम् । २ अ-आ-का-ताप्रतिष्वनुपलभ्यमानोऽयं कोष्ठकस्थः पाठो मप्रतितोऽत्र योजितः।
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