Book Title: Shatkhandagama Pustak 11
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 355
________________ ३३० छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ६, २०३ ३१९।१६ । पुणो एदेण सव्वदव्वे भागे हिंदे बिदियगुणहाणिपढमहिदिजीवपमाणं होदि ३२ । पुणो परिहाणि कादूण णेदव्वं जाव छण्णं जवाणं सागरोवमसदपुधत्तमेत्तमुवरि चढिदूण द्विदजवमज्झजीवपमाणं पत्तं त्ति । पुणो तस्स भागहारो किंचूणतिण्णिगुणहाणीयो ३१९ । ३२ । पुणो एदस्सुवरि पक्खेवं कादूण णेदव्वं जाव छण्णं जवाणं चरिमहिदिजीवपमाणं पत्तं ति । पुणो तप्पमाणेण अवहिरिजमाणे पलिदोवमस्स असंखेजदिभागमेत्तगुणहाणिहाणंतरेण कालेण अवहिरिजंति । तं जहा-जवमज्झाणमुवरिमणाणागुणहाणिसलागाणं (४) अण्णोण्णभत्थरासिणा (१६) तिण्णिगुणहाणीयो गुणिय किंचूणे कदे पलिदोवमस्स असंखेजदिमागमेत्तगुणहाणीयो भागहारो होदि त्ति (६३८ । ५)। पुणो एदेण सव्वदव्वे भागे हिदे चरिमहिदिजीवपमाणमागच्छदि (५)। एवं भागहारपरूवणा गदा। छण्णं जवाणं जवमज्झजीवा सव्वजीवाणं केवडियो भागो १ असंखेजदिभागो। को पडिभागो ? किंचूणतिण्णिगुणहाणीयो। एवं जवमज्झस्स हेटोवरिं जाणिदूण भागाभागपरूवणा कायव्वा । भागाभागपरूवणा गदा । सव्वत्योवा छण्णं जवाणं चरिमट्ठिदिजीवा ५ । तेसिं जहण्णहिदिजीवा असंखेजगुणा । को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो । कुदो ? जवमज्झस्स उवरिम भागहारको अपवर्तित करनेपर उसका अर्ध भाग उत्पन्न होता है-१४२; 32+२=१६ । इसका सब द्रव्यमैं भाग देनेपर द्वितीय गुणहानिकी प्रथम स्थितिके जीवोंका प्रमाण होता है-६३८- ३२ । इतनी हानि करके छह यवोंके शतपृथक्त्व सागरोपम प्रमाण आगे जाकर स्थित यवमध्य सम्बन्धी जीवोंका प्रमाण प्राप्त होने तक ले जाना चाहिये । उसका भागहार कुछ कम तीन गुणहानियां है-३३३ । इसके आगे प्रक्षेप करके छह यषोंकी भन्तिम स्थिति सम्बन्धी जीवोंका प्रमाण प्राप्त होने तक ले जाना चाहिये । उस प्रमाणसे अपहृत करनेपर वे पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र गुणहानिस्थानान्तरकालके द्वारा अपहृत होते हैं। यथा-यवमध्योंकी उपरिम नानागुणहानिशलाकाओं (४) की 'अन्योन्याभ्यस्त राशि (१६) से तीन गुणहानियोंको गुणित करके कुछ कम करनेपर पल्योपमके असंख्यातचे भाग मात्र गुणहानियां भागहार होती हैं । इसका सब द्रव्यमें भाग देनेपर अन्तिम स्थितिके जीवोंका प्रमाण (५) भाता है। इस प्रकार भागहारप्ररूपणा समाप्त हुई। छह यवोंके यवमध्यके जीव सब जीवोंके कितने भाग प्रमाण हैं? वे सब जीवोंक असंख्यातधे भाग प्रमाण हैं । प्रतिभाग क्या है ? प्रतिभाग कुछ कम तीन गुणहानियां हैं। इसी प्रकार यवमध्यके नीचे व ऊपर भी जानकर भागाभागकी प्ररूपणा करना चाहिये। भागाभागकी प्ररूपणा समाप्त हुई। छह यवोंकी अन्तिम स्थितिके जीव सबसे स्तोक हैं (५)। उनकी जघन्य स्थितिके जीष उनसे असंख्यातगुणे हैं। गुणकार क्या है ? गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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