Book Title: Shatkhandagama Pustak 11
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 364
________________ ४, २, ६, २२५. ] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे ट्ठिदिबंधज्यवसाणपरूवणा [३३९ . जहिदिबंधो णाम अबाहाए सहिदजहण्णहिदिबंधो, पहाणीकयकालत्तादो। जहण्णबंधो णाम आवाधूणजहण्णबंधो, पहाणीकयणिसेगहिदित्तादो । तेण जहण्णहिदिबंधादो जहिदिबंधो विसेसाहिओ । केत्तियमेत्तेण ? सगअंतोमुहुत्तजहण्णाबाहामेत्तेण । असादस्स जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओं ॥ २२२ ॥ केत्तियमेत्तेण ? संखेजसागरोवममेत्तेण । जट्ठिदिबंधो विसेसाहिओ ॥ २२३ ॥ केत्तियमेत्तेण ? जहण्णाबाहामेत्तेण ।। जत्तो उक्कस्सयं दाहं गच्छदि सा ट्ठिदी संखेज्जगुणां ॥२२४॥ दाहो णाम संकिलेसो । कुदो? इह-परभवसंतावकारणत्तादो। उक्कस्सदाहो णाम उक्कस्सहिदिबंधकारणउक्कस्ससंकिलेसो । जिस्से हिंदीए ठाइदूण उक्कस्ससंकिलेसं गंदण उक्कस्सहिदि बंधदि सा हिदी संखेजगुणा त्ति उत्तं होदि। अंतोकोडाकोडी संखेज्जगुणों ॥२२५॥ आवाधासे सहित जघन्य स्थितिबन्धको ज-स्थितिबन्ध कहा जाता है, क्योंकि, वहां कालकी प्रधानता है । आबाधासे हीन जघन्य स्थितिबन्ध जघन्य बन्ध कहलाता है, क्योंकि, उसमें निषेकस्थितिकी प्रधानता है । इसीलिये जघन्य स्थितिबन्धसे ज-स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। कितने मात्रसे वह अधिक है? वह अपनी अन्तर्मुहर्त मात्र जघन्य भावाधाके प्रमाणसे अधिक है। असातावेदनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ॥ २२२॥ वह कितने मात्रसे अधिक है। वह संख्यात सागरोपम मात्रसे अधिक है। ज-स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ॥ २२३॥ कितने मात्रसे अधिक है ? वह जघन्य आबाधा मात्रसे अधिक है। जिसके कारण प्राणी उत्कृष्ट दाहको प्राप्त होता है वह स्थिति संख्यातगुणी है ॥२२४॥ दाहका अर्थ संक्लेश है, क्योंकि, वह इस भव और पर भवमें सन्तापका कारण है। उत्कृष्ट दाहका अर्थ उत्कृष्ट स्थितिबन्धका कारणभूत उत्कृष्ट संक्लेश है। जिस स्थितिमें स्थित होकर उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त हो जीव उत्कृष्ट स्थितिको बांधता है वह स्थिति संख्यातगुणी है, यह अभिप्राय है। अन्तःकोड़ाकोडिका प्रमाण संख्यातगुणा है ॥ २२५॥ . १ ततोऽप्यशुभपरावर्तमानप्रकृतीनां जघन्यः स्थितिबन्धः विशेषाधिकः९। क. प्र. (म.टी.) १,९८.। २ अ-आ-काप्रतिषु 'जहण्णढिदिबन्धो' इति पाठः। ३ तेभ्योऽपि यवमध्यादुपरि डायस्थिति. संख्येयगुणः १७। यतः स्थितिस्थानादपवर्तनाकरणवशेनोत्कृष्ट स्थितिं याति तावती स्थिति यस्थितिः रित्युच्यते । क. प्र. (म. टी.) १.९९. ४ तापतौ'उकस्सहिदी' इति पाठः। ५ ततोऽपि सागरोपमाणामन्तःकोटाकोटी संख्येयगुणा १८ । क. प्र. (म. टी.) १,१००। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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