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छक्खंडागमे वेयणाखंड
पुव्विदी अंतोकोडा कोडिमेत्ता, एसा वि हिदी' किंतु एसा णिव्वियप्पा, तेण संखेज्जगुणा त्ति भणिदा ।
३४०. ]
सादरस बिट्ठाणियजवमज्झस्स उवरि एयंतसागारपाओग्गाणाणि संखेज्जगुणाणि ॥ २२६ ॥
कुदो ? अंतोकोडाकोडीए ऊणपण्णा रससागरोवमकोडा कोडिपमाणत्तादो । सादस्स उक्कस्सओ द्विदिबंधों विसेसाहिओं ॥ २२७ ॥ केतियमेत्तेण ? सादअणागारपाओग्गट्ठाण पहुडि हेट्टिमआबाधूणअंतो को डाकोडिसेियहिदिमेत्तेणें ।
जट्टिदिबंधो विसेसाहियो ॥ २२८ ॥
केत्तियमेत्तेण ? सगआबाधामेत्तेण । दाहट्टिदी विसेसाहियाँ ॥ २२९ ॥
[ ४, २, ६, २२६.
अंतोकोडाको डिमेत्ता चेव ।
पूर्वोक्त स्थितिका प्रमाण अन्तः कोडाकोडि मात्र है, यह स्थिति भी अन्तःकोड़ाकोड़ि प्रमाण ही है । किन्तु यह स्थिति निर्विकल्प है, इसीलिये संख्यातगुणी कही गई है। सातावेदनीयके द्विस्थानिक यवमध्यके ऊपरके एकान्ततः साकार उपयोगके योग्य स्थान संख्यातगुणे हैं ॥ २२६ ॥
क्योंकि, वे अन्तःकोड़ा कोड़ि से हीन पन्द्रह कोड़ाकोड़ि सागरोपम प्रमाण हैं ।
सातावेदनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ।। २२७ ॥
वह कितने मात्र से अधिक है ? साताके अनाकार उपयोगके योग्य स्थानों को लेकर नीचे आबाधासे रहित अन्तःकोड़ाकोड़ि सागरोपम निषेकस्थितियोंके प्रमाणसे वह अधिक हैं ।
- स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ।। २२८ ॥
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कितने मात्र से वह अधिक है ? वह अपनी आबाधा के प्रमाणसे अधिक है । दाहस्थिति विशेष अधिक है ।। २२९ ॥
१ अ आ-काप्रतिषु 'एसा दि ट्ठिद ' इति पाठः । २ ततोऽपि परावर्तमान शुभप्रकृतीनां द्विस्थानकरसयवमध्यस्योपरि यानि मिश्राणि स्थितिस्थानानि तेष मुकान्तमाकारोपयोगयोग्यानि स्थितिस्थानानि संख्येयगुणानि १९ । क. प्र. ( म. टी. ) १,१०० ३ अ आ-काप्रतिषु ' उकस्सद्विदिवन्धो' इति पाठः । ४. तेभ्योऽपि परावर्तमान शुभप्रकृतीनामुत्कृष्टः स्थितिबन्धो विशेषाधिकः २० । क. प्र. (म. टी.) १,१००.. । ५ मप्रतिपाठोऽयम् । अ-आ-का-ताप्रतिषु ' मेत्तो' इति पाठः । ६ अ आ का प्रतिषु ' जहण्णट्ठिदिबन्धो ' इति पाठः । ७ ततोऽप्यशुभ- ( १ ) परावर्तमान शुभप्रकृतीनां बद्धा डायस्थितिर्विशेषाधिका २१ । यतः स्थितिस्थानात् मांडूकप्लुतिन्यायेन डायां फालां दत्वा या या स्थितिर्बध्यते ततः प्रभुति
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