Book Title: Shatkhandagama Pustak 11
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 349
________________ [.२ ३२४] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ६, १८७. सादस्स बिट्ठाणबंधा जीवा असादस्स चउट्ठाणबंधा जीवा णाणावरणीयस्स जहणियाए ट्ठिदीए जीवा थोवा ।। १८७॥ कुदो ? जहण्णट्ठाणजीहितो विसेसाहियकमेण उवरिमट्ठिदिजीवाणं वलिदसणादो। बिदियाए द्विदीए जीवा विसेसाहिया ॥१८८ ॥ _____ केत्तियमेत्तो विसेसो ? एगजीवविसेसमेत्तो। को पडिभागो ? एगदुगुणवडिअद्धाणं । तदियाए ट्ठिदीए जीवा विसेसाहिया ॥ १८९॥ को विसेसो ? ख्वाहियगुणहाणीए खंडिदएगखंडमेत्तो । एवं विसेसाहिया विसेसाहिया जाव सागरोवमसदपुधत्तं ॥ १९०॥ __ एदेण सागरोवमसदपुधत्तणिद्देसेण जवमज्झाणं हेडिमअद्धाणं जाणाविदं । एत्थ गुणहाणिअद्धाणाणं पमाणमवहिदं । जीवविसेसा पुण अणवहिदा, गुणहाणिं पडि दुगुणदुगुणक्कमेण तेर्सि वड्डिदंसणादो। - तेण परं विसेसहीणा विसेसहीणा जाव सादस्स असादस्स उक्कस्सिया हिदि ति ॥ १९१ ॥ _ साताके द्विस्थानबन्धक जीव और असाताके चतुःस्थानबन्धक जीव ज्ञानावरणीयकी जघन्य स्थितिमें स्तोक हैं ॥ १८७॥ इसका कारण यह है कि जघन्य स्थितिक जीवोंकी अपेक्षा जा जीवोंके विशेष अधिक क्रमसे वृद्धि देखी जाती है। . द्वितीय स्थितिमें जीव विशेष अधिक हैं ॥ १८८॥ विशेष कितना है ? बुह एक जीविशेषके बराबर है। प्रतिभाग क्या है ? एक दुगुणवृद्धिअध्वान प्रतिमाग है। तृतीय स्थितिमें जीव विशेष अधिक हैं ॥ १८९॥ _ विशेष क्या है ? एक अधिक गुणहानिका द्वितीय स्थितिमें भाग देनेपर जो एक भाग प्राप्त हो उतना विशेषका प्रमाण है। इस प्रकार शतपृथक्त्व सागरोपम प्रमाण स्थिति तक जीवोंका प्रमाण विशेष अधिक विशेष अधिक होता गया है ॥ १९० ॥ 'शतपृथक्त्व सागरोपम' इस निर्देशसे यवमध्चोंके अधस्तन अध्धानको बतलाया गया है। यहां गुणहानिअध्वानोंका प्रमाण अवस्थित है। परन्तु जीव विशेष अनवस्थित है, प्रत्येक गुणहानिके अनुसार उनके दुगुण-दुगुण वृद्धि देखी जाती है। इसके आगे साता व असाता वेदनीयकी उत्कृष्ट स्थिति तक वे विशेष हीन विशेष हीन होते गये हैं ॥ १९१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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