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छक्खंडागमे बेयणाखंड
[ ४, २, ६, १९३.
पंडिवजमाणा । कं पेक्खिदूण दुगुणत्ते पुच्छिदे जहण्णहिदीए जीवेर्हितो त्ति भणिदं होदि । एदेसिं, जवमज्झाणं णाणा गुणहाणिसलागाहि अप्पप्पणी अद्धाणे भागे हिदे एगगुणहाणि - अद्धा होदि त्तत्वं । जवमज्झस्स हेट्ठा एक्का चैव गुणहाणी ण होदि, अगाओ होति त्ति जाणावणद्वमुत्तरसुत्तं भणदि
एवं दु गुणवडिदा दुगुणवड्ढिदा जाव जवमज्झं ॥ १९३ ॥ अवमिद्धाणं गंतॄण दुगुणवड्डी होदि त्ति जाणावणहमेवमिदि विदेसो कदो । जवमज्झस्स ट्ठा गुणहाणीयो बहुगाओ होंति त्ति जाणावणटुं विच्छाणिद्देसो' कदो । तेण परं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागं गंतूण दुगुणहीणा ॥। १९४ ।।
जवमज्झादो उवरिमगुणहाणीयो आयामेण हेट्ठिमगुणहाणीहि समाणाओ । से सुगमं ।
एवं दुगुणहीणा दुगुणहीणा जाव सागरोवमसदपुधत्तं ॥ १९५ ॥ एदसिं चदुण्णं जवमज्झाणं हेडिमभागो व्व उवरिमभागो सागरोवमसदपुधत्तमेत्तो चेव होदि त्ति जाणावणहं सागरोवमसदपुधत्तग्गहणं कदं । सेसं सुगमं ।
स्थितिके जीवोंकी अपेक्षा डुगुणी दुगुणी वृद्धिको प्राप्त होते हैं। किसकी अपेक्षा वे दुगुणे हैं, ऐसा पूछनेपर उत्तर देते हैं कि वे जघन्य स्थितिके जीवोंकी अपेक्षा दुगुणे हैं, यह अभिप्राय निकलता है। इन यवमध्योंकी नानागुणहानिशलाका मकां अपने अपने अध्वानमें भाग देनेपर एक गुणहानिअध्वान प्राप्त होता है, ऐसा ग्रहण करना चाहिये । यवमध्यके नीचे एक ही गुणहानि नहीं होती, किन्तु वे अनेक होती हैं; इस बातका ज्ञापन करानेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं
इस प्रकार यवमध्य तक वे दुगुणी दुगुणी वृद्धिको प्राप्त हुए हैं ॥ १९३ ॥ अवस्थित अध्वान जाकर दुगुणी वृद्धि होती है, इस बातका परिज्ञान करानेके लिये ' एवं ' पदका निर्देश किया गया है । यवमध्यके नीचे गुणहानियां बहुत होती हैं. इस बातके शापनार्थ 'दुगुणवडिदा दुगुणवढिदा ' यह वीप्सा (द्विरुक्ति) का निर्देश किया है । इसके आगे पल्योपमके असंख्यातवें भाग जाकर वे दुगुणी हानिको प्राप्त होते हैं ॥ १९४ ॥
मध्यसे ऊपरकी गुणहानियां आयामकी अपेक्षा समान हैं। शेष कथन सुगम है । इस प्रकार शतपृथक्त्व सागरीपम प्रमाण स्थितितंक दुगुणी दुगुणी हानिको प्राप्त होते गये है ॥ १९५ ॥
इन चार यवमध्योंके अधस्तन भागके समान उपरिम भाग भी शतपृथक्त्व सागरोपम प्रमाण ही है, इस बातका परिक्षा कराने के लिये सूत्र में ' सागरोपमशतपृथक्त्व ' का ग्रहण किया है। शेष कथन सुगम है ।
१ प्रतिषु 'मिच्छाणिद्देसो ' इति पाठः ।
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