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_ छक्खंडागमे वेयणाखंडं
[४, २, ६, १५३ ठिदिबंधट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि ॥ १५३॥ को गुणगारो ? संखेजस्वोवट्टिदसगुक्कस्साबाहा ।
जहण्णओ हिदिबंधो संखेज्जगुणो ॥१५४ ॥ सुगमं ।
उक्कस्सओ द्विदिबंधो विसेसाहिओ ॥ १५५॥ केत्तियमेत्तेण ? पलिदोवमस्स संखेजदिभागमेत्तेण ।
एइंदियबादर-सुहुम-पज्जत्त-अपज्जत्तयाणं सत्तण्हं कम्माणं आउववज्जाणमाबाहट्ठाणाणि आबाहाकंदयाणि च दो वि तुल्लाणि थोवाणि ॥१५६ ॥
कुदो ? आवलियाए असंखेजदिभागप्पमाणत्तादो। . जहणिया आबाहा असंखेज्जगुणा ॥ १५ ॥
को गुणगारो ? आवलियाए असंखेजदिभागो। कुदो ? आवलियाए असंखेजदि- भागमेत्तआबाहहाणेहि संखेजावलियमेत्तजहण्णाबाहाए ओवट्टिदाए आवलियाएं असंखेजदिभागुवलंभादो।
स्थितिबन्धस्थान असंख्यातगुणे हैं ॥ १५३ ॥ गुणकार क्या है ? गुणकार संख्यात अंकोंसे अपवर्तित अपनी उत्कृष्ट आवाधा है ।
जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है ॥ १५४ ।। • यह सूत्र सुगम है।
उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ॥ १५५ ॥ वह कितने मात्रसे विशेष अधिक है ? वह पल्योपमके संख्यातवें भाग माणसे मधिक है।
बादर और सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त-अपर्याप्त जीवोंके आयुको छोड़कर शेष सात कर्मोके आबाधास्थान और आबाधाकाण्डक दोनों ही तुल्य व स्तोक हैं ॥ १५६ ॥
क्योंकि, वे आवलीके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं।
जघन्य आबाधा असंख्यातगुणी है ॥ १५७॥
गुणकार क्या है ? गुणकार आपलीका असंख्यातवां भाग है, क्योंकि, आवलीके मसंख्यात भाग प्रमाण आबाधास्थानोंका संख्यात आवली मात्र जघन्य आबाघामें भाग देनेपर आवलीका असंख्यातवां भाग पाया जाता है ?
१ ताप्रती 'आवलियाए' इत्येतत्पदं नोपलभ्यते ।
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