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________________ २४८] _ छक्खंडागमे वेयणाखंडं [४, २, ६, १५३ ठिदिबंधट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि ॥ १५३॥ को गुणगारो ? संखेजस्वोवट्टिदसगुक्कस्साबाहा । जहण्णओ हिदिबंधो संखेज्जगुणो ॥१५४ ॥ सुगमं । उक्कस्सओ द्विदिबंधो विसेसाहिओ ॥ १५५॥ केत्तियमेत्तेण ? पलिदोवमस्स संखेजदिभागमेत्तेण । एइंदियबादर-सुहुम-पज्जत्त-अपज्जत्तयाणं सत्तण्हं कम्माणं आउववज्जाणमाबाहट्ठाणाणि आबाहाकंदयाणि च दो वि तुल्लाणि थोवाणि ॥१५६ ॥ कुदो ? आवलियाए असंखेजदिभागप्पमाणत्तादो। . जहणिया आबाहा असंखेज्जगुणा ॥ १५ ॥ को गुणगारो ? आवलियाए असंखेजदिभागो। कुदो ? आवलियाए असंखेजदि- भागमेत्तआबाहहाणेहि संखेजावलियमेत्तजहण्णाबाहाए ओवट्टिदाए आवलियाएं असंखेजदिभागुवलंभादो। स्थितिबन्धस्थान असंख्यातगुणे हैं ॥ १५३ ॥ गुणकार क्या है ? गुणकार संख्यात अंकोंसे अपवर्तित अपनी उत्कृष्ट आवाधा है । जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है ॥ १५४ ।। • यह सूत्र सुगम है। उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ॥ १५५ ॥ वह कितने मात्रसे विशेष अधिक है ? वह पल्योपमके संख्यातवें भाग माणसे मधिक है। बादर और सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त-अपर्याप्त जीवोंके आयुको छोड़कर शेष सात कर्मोके आबाधास्थान और आबाधाकाण्डक दोनों ही तुल्य व स्तोक हैं ॥ १५६ ॥ क्योंकि, वे आवलीके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं। जघन्य आबाधा असंख्यातगुणी है ॥ १५७॥ गुणकार क्या है ? गुणकार आपलीका असंख्यातवां भाग है, क्योंकि, आवलीके मसंख्यात भाग प्रमाण आबाधास्थानोंका संख्यात आवली मात्र जघन्य आबाघामें भाग देनेपर आवलीका असंख्यातवां भाग पाया जाता है ? १ ताप्रती 'आवलियाए' इत्येतत्पदं नोपलभ्यते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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