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४, २, ६, १६४.] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे अप्पाबहुअपरूवणा [३०७ तत्थ रूवणे आबाहाकंदए अवणिदे जहण्णहिदिबंधो होदि । आबाहहाणविसेसेहि एगमाबाहाकंदयं गुणिय तत्थ रूवूणाबाहाकंदए पक्खित्ते हिदिबंधट्टाणविसेसो होदि । उक्कस्सियाए आबाहाए एगआबाहाकंदए गुणिदे उक्कस्सटिदिबंधो होदि । - संपहि चदुण्णमेइंदियजीवसमासाणमट्टण्णं विगलिंदियजीवसमासाणं च आबाहाहाणाणेमाबाहाकंदयाणं च पमाणपरूवणं कस्सामो । तं जहा—संखेजपलिदोवममेत्तवीचारहाणेहि जदि संखेजावलियमेत्ताणि आबाहट्टाणाणि आबाहाकंदयाणि च लभंति तो पलिदोवमस्स संखेजदिभागमेत्तवीचारहाणाणं पलिदोवमस्स असंखेजदिभागमेत्तवीचारहाणाणं च केत्तियाणि आबाहाहाणाणि आबाहाकंदयाणि च लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए चदुण्णमेइंदियजीवसमासाणमावलियाए असंखेजदिभागमेत्ताणि आबाहाहाणाणि आबाहाकंदयाणि च होति । बेइंदियादिअट्टणं पि जीवसमासाणमावलियाए संखेजदिभागमेत्ताणि आबाहाहाणाणि आबाहाकंदयाणि च होति । एवं णाणापदेसगुणहाणिहाणंतराणमेगपदेसगुणहाणिहाणंतरस्स च तेरासियं काऊण सव्वजीवसमाससव्वकम्महिदीणं पमाणपरूवणं कायव्वं । होता है। जघन्य आबाधासे एक आबाधाकाण्डकको गुणित करके उसमें से एक कम आबाधाकाण्डकको घटा देनेपर जघन्य स्थितिबन्ध होता है। आबाधास्थानविशेषोंसे एक आबाधाकाण्डकको गुणित करके प्राप्त राशिमें एक कम आबाधाकाण्डकको मिलानेपर स्थितिबन्धस्थानविशेष प्राप्त होता है । उत्कृष्ट आवाधासे एक आबाधाकाण्डकको गुणित करनेपर उत्कृष्ट स्थितिबन्ध प्राप्त होता है।
अब चार एकेन्द्रिय समासों और आठ विकलेन्द्रिय जीवसमासोंके आवाधास्थानों व आवाधाकाण्डकोंके प्रमाणकी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है-संख्यात पल्योपम प्रमाण वीचारस्थानोंसे यदि संख्यात आवलि प्रमाण आवाधास्थान व आबाधाकाण्डक प्राप्त होते हैं, तो पल्योपमके संख्यातवें भाग मात्र वीचारस्थानों और पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र वीचारस्थानोंके कितने आवाधास्थान और आबाधाकाण्डक प्राप्त होंगे, इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाको अपवर्तित करनेपर चार एकेन्द्रिय जीवसमासोंके आवलिके असंख्यातवें भाग मात्र आवाधास्थान और आवाधाकाण्डक प्राप्त होते हैं। द्वीन्द्रियादिक आठोंही जीवसमासोंके आवलिके संख्यातवें भाग मात्र आवाधास्थान व आवाधाकाण्डक होते हैं । इसी प्रकार नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तरों और एक प्रदेशगुणहानिस्थानान्तरका त्रैराशिक करके समस्त जीवसमासों सम्बन्धी कर्मस्थितियोंके प्रमाणकी प्ररूपणा करना चाहिये।
१काप्रती आबाहाहाणाणि', ताप्रती आबाहाट्रणाणि (f), इति पाठः। २ अ-आप्रत्यो। 'विचारहाणेहियो जदि काप्रसौ विचारदाणेहिओ जदि'. ताप्रतो विचारहाणेहिय (हितो) इति पाठः। ३ ताप्रतो'लब्भदि (भंति)', इति पाठः। ४ ताप्रतो' असंखे.' इति पाठः। ५ ताप्रतो 'संखेजदि' इति पाठः ६ ताप्रती'च' इत्येतस्पदं नास्ति ।
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