Book Title: Shatkhandagama Pustak 11
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 331
________________ ३०६ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ६, १६४. __ आउअस्स अंतोमुहत्तूणपुव्वकोडितिभागमेत्ताणि आबाहट्ठाणाणि । आबाहाकंदयांणि पुण णस्थि । कारणं चिंतिय वत्तव्वं । जेणेवंविहमाबाहाकंदयं तेणेगाबाहाकंदएण समऊणजहण्णहिदिमोवट्टिय लद्धम्मि एगरूवे पक्खित्ते जहणिया आबाहा आगच्छदि । अधवा, जहण्णाबाहाए आबाहाहाणगुणिदएगाबाहाकंदए भागे हिदे जं लद्धं तेणे हिदिबंधहाणेसु भागे हिदे जहणिया आबाहा आगच्छदि । अधवा, जहण्णाबाहाए उक्कस्साबाहमोवट्टिय लद्धेण एगमाबाहाकंदयं गुणिय तेण उक्कस्सहिदीए भागे हिदाए जहणियाबाहा होदि । एक्केण आबाहाकंदएण हिदिबंधहाणेसु भागे हिदेसु आबाहहाणाणि आगछंति । जहण्णाबाहमुक्कस्साबाहादो सोहिदे सुद्धसेसमाबाहहाणविसेसो णाम । एक्केणाबाहाकंदएण उक्कस्सहिदीए भागे हिदाए उक्कस्साबाहा होदि । एगपदेसगुणहाणिहाणंतरेण कम्महिदिम्हेिं भागे हिदे णाणापदेसगुणहाणिहाणंतराणि आगच्छंति । णाणापदेसगुणहाणिहाणतरेहि कम्महिदीए ओवट्टिदाए एगपदेसगुणहाणिहाणंतरं होदि । उक्कस्सियाए आबाहाए उक्कस्सहिदीए ओवट्टिदाए एगमाबाहाकंदयं होदि । अधवा, आबाहाहाणेहि हिदिबंधहाणेसु ओवट्टिदेसु एगमाबाहकंदयं होदि । जहणियाए आबाहाए एगमाबाहाकंदयं गुणिय पुणो ___आयुके आबाधास्थान अन्तर्मुहूर्त कम पूर्वकोटिके तृतीय भाग प्रमाण हैं। उसके आबाधाकाण्डक नहीं होते। इसका कारण विचारपूर्वक कहना चाहिये। जिस कारण इस प्रकारका आबाधाकाण्डक है इसीलिये एक आवाधाकाण्डकका एक समय कम जघन्य स्थितिमें भाग देनेपर जो लब्ध हो उसमें एक अंक मिला देनेपर घाय आबाधाका प्रमाण आता है । अथवा, जघन्य आबाधाका आवाधास्थानोंसे गुणित एक आवाधाकाण्डकमें भाग देनेपर जो लब्ध हो उसका स्थितिबन्धस्थानोंमें भाग देनेसे जघन्य आबाधा आती है। अथवा, उत्कृष्ट आवाधामें जघन्य आवाधाका भाग देकर जो प्राप्त हो उससे एक आवाधाकाण्डकको गुणित करना चाहिये । पश्चात् प्राप्त राशिका उत्कृष्ट स्थितिमें भाग देनेपर जघन्य आबाधाका प्रमाण आता है। स्थितिबन्धस्थानोंमें एक श्राबाधाकाण्डकका भाग देनेपर आवाधास्थानोंका प्रमाण भाता है । उत्कृष्ट आबाधामेसे जघन्य आवाधाको कम करनेपर जो शेष रहे वह आबाधास्थानविशेष कहलाता है। उत्कृष्ट स्थितिमें एक आवाधाकाण्डकका भाग देनेपर उस्कृष्ट आषाधाका प्रमाण आता है। कर्मस्थितिमें एकप्रदेशगुणहानिस्थानान्तरका भाग देनेपर नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तरका प्रमाण आता है। नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तरका कर्मस्थितिमें भाग देनेपर एक प्रदेशगुणहानिस्थानान्तरका प्रमाण आता है। उत्कृष्ट स्थितिमें उत्कृष्ट आबाधाका भाग देनेपर आवाधाकण्डकका प्रमाण होता है। अथवा, स्थितिबन्धस्थानों में आबाधास्थानोंका भाग देनेपर एक आवाधाकाण्डकका प्रमाण १ अप्रतौ 'जं बंधं ति तेण', आप्रतौ 'जं बंध तेण', इति पाठः। २ अ-आ-ताप्रतिषु 'कम्मद्विदिं', काप्रती 'कम्मद्विदि' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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