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४, २, ६, १६४.] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे अण्याबहुअपरूवणा [३०५ दोसो ? ण, जहण्णहिदिमुक्कस्सदिम्हि सोहिय रूवे पक्खित्ते हिदिबंधट्ठाणाणमणुप्पत्तिप्पसंगादो । ण च एवं, हिदिबंधट्ठाणसुत्तेण सह विरोहादो । एवं कदे अन्तोमुहुत्तूणतिण्णिवाससहस्समेत्ताणि आबाहाहाणाणि लद्धाणि' होति । जत्तियाणि आबाहाहाणाणि तत्तियाणि चेव आबाहाकंदयाणि लब्भंति । णवरि अंतिममाबाहकंदयमेगरूवर्ण । कुदो ? जहण्णहिदिजहण्णाबाहाए चरिमसमयस्स सव्वणिसेगहिदीसु परिहीणासु जहण्णहिदिग्गहणादो।
मोहणीयस्स अंतोमुहत्तूणसत्तवाससहस्समेत्ताणि आबाहाहाणाणि आबाहाकंदयाणि च हवंति । एत्य आबाहाकंदएसु एगरूवअवणयणस्स कारणं पुव्वं व वत्तव्वं । एवमूणिदे आबाहाहाणाणि आबाहाकंदयाणि च तुल्लाणि त्ति अप्पाबहुगसुत्तेण विरोहो किण्ण होदि त्ति उत्ते, ण, वीचारहाणेसु उप्पण्णआबाहाकंदयसलागाणं तेहि समाणत्तं पडि विरोहाभावादो। ___णामा-गोदाणमंतोमुहुत्तूणबेवाससहस्समेत्ताणि आबाहाहाणाणि आबाहाकंदयाणि हवंति ।
समाधान-नहीं, क्योंकि, ऐसा होनेसे उत्कृष्ट स्थितिमेंसे जघन्य स्थितिको कम करके एक अंक मिलानेपर स्थितिबन्धस्थानोंकी उत्पत्तिका प्रसंग आता है। परन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि, स्थितिबन्धस्थान सूत्रके साथ विरोध आता है। ___इस प्रकार करनेपर अन्तमुहूर्तसे रहित तीन हजार वर्ष प्रमाण आबाधास्थान प्राप्त होते हैं। जितने आबाधास्थान प्राप्त हैं उतने ही आबाधाकाण्डक प्राप्त होते हैं। विशेष इतना है कि अन्तिम आबाधाकाण्डक एक अंकसे हीन होता है, क्योंकि, जघन्य स्थिति सम्बन्धी जघन्य आबाधाके अन्तिम समयकी सब निषेकस्थितियोंकी हानि हो जानेपर जघन्य स्थितिका ग्रहण किया गया है।
मोहनीय कर्मके अन्तर्मुहूर्तसे हीन सात हजार वर्ष प्रमाण आवाधास्थान और आबाधाकाण्डक होते हैं। यहाँ आबाधाकाण्डकों से एक अंक कम करनेका कारण पहिलेके ही समान कहना चाहिये।
शंका-इस प्रकार कम करनेपर 'आबाधास्थान और आबाधाकाण्डक दोनों तुल्य हैं ' इस अल्पबहुत्वसूत्रके साथ विरोध क्यों नहीं होगा?
समाधान-इस शंकाके उत्तरमै कहते हैं कि उससे विरोध नहीं होगा, क्योंकि, घीवारस्थानोंमें उत्पन्न आवाधाकाण्डकशलाकाओंकी उनके साथ समानतामें कोई विरोध नहीं है।
नाम व गोत्रके आवाधास्थान और आबाधाकाण्डक अन्तर्मुहूर्त कम दो हजार वर्ष प्रमाण हैं।
१ अ-आ-काप्रतिषु हिदीहि ' इति पाठः। २ अ-आ-का प्रतिषु 'अद्धाणि' इति पाठः। ३ अ-आ-काप्रतिषु 'रूवाणं' इति पाठः।
छ. ११-३९
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