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२८४] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, ६, १६४. दो वि तुल्लाणि थोवाणि । चदुण्णं कम्माणं आबाहहाणाणि आबाहाकंदयाणि च दो वि तुल्लाणि विसेसाहियाणि । मोहणीयस्स आबाहाहाणाणि आबाहाकंदयाणि च दो वि तुल्लाणि संखेजगुणाणि । आउअस्स जहणिया आबाहा संखेजगुणा । जहण्णओ हिदिबंधो संखेजगुणो । आबाहाहाणाणि संखेजगुणाणि । उक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया । णामा-गोदाणं जहणिया आबाहा संखेजगुणा । उक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया । चदुण्णं कम्माणं जहणिया आबाहा विसेसाहिया । उक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया । मोहणीयस्स जहणिया आबाहा संखेजगुणा । उक्कस्सिया आबाहा · विसेसाहिया । आउअस्स हिदिबंधहाणाणि संखेजगुणाणि । उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । णामा-गोदाणं णाणापदेसगुहाणिहाणंतराणि असंखेजगुणाणि । चदुण्णं कम्माणं णाणापदेसगुणहाणिहाणंतराणि विसेसाहियाणि । मोहणीयस्स णाणापदेसगुणहाणिहाणंतराणि संखेजगुणाणि । सत्तण्णं कम्माणमेगपदेसगुणहाणिहाणंतरमसंखेजगुणं । सत्तण्णं कम्माणमेगमाबाहाकंदयमसंखेजगुणं । उवरि सेसपदाणमसण्णिपंचिंदियपजत्तभंगो।।
__ बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिदियपज्जत्तयाणं णामा-गोदाणमाबाहहाणाणि आबाहाकंदयाणि च दो वि तुल्लाणि थोवाणि । चदुण्णं कम्माणमाबाहाहाणाणि आबाहाकंदयाणि च दो वि तुल्लाणि विसेसाहियाणि । मोहणीयस्स आबाहाहाणाणि आबाहाकंदयाणि च दो वि तुल्लाणि संखेजगुणाणि । आउअस्स जहण्णिया आबाहा संखेजगुणा । तस्सेव जहण्णओ
दोनों ही तुल्य व स्तोक हैं । चार कर्मोके आवाधास्थान और आवाधाकाण्डक दोनों ही तुल्य विशेष अधिक हैं । मोहनीयके आबाधास्थान और आबाधाकाण्डक दोनों ही तुल्य संख्यातगुणे हैं। आयुकी जघन्य आबाधा संख्यातगुणी है। जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । आबाधास्थान संख्यातगुणे हैं। उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है। नाम व गोत्रकी जधन्य आबाधा संख्यातगुणी है। उनकी उत्कृष्ट आवाधा विशेष अधिक है । चार कर्मोंकी जघन्य आबाधा विशेष अधिक है। उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है। मोहनीयकी जघन्य आबाधा संख्यातगुणी है । उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है। आयुके स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं । उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । नाम-गोत्रके नानाप्रदेश गुणहानिस्थानान्तर असंख्यातगुणे हैं। चार कर्मोंके नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर विशेष अधिक हैं । मोहनीयके नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर संख्यातगुणे हैं। सात कौंका एकप्रदेशगणहानिस्थानान्तर असंख्यातगणा है। सात काँका पक आबाधाकाण्ड असंख्यातगुणा है। आगे शेष पदोंकी प्ररूपणा असंशी पचेन्द्रिय पर्याप्तकोंके समान है।
द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय पर्याप्तक जीवोंके नाम-गोत्रके आवाधास्थान और आवाधाकाण्डक दोनों ही तुल्य व स्तोक हैं। चार कर्मोंके आवाधास्थान और आवाधाकाण्डक दोनों ही तुल्य विशेष अधिक हैं । मोहनीयके आवाधास्थान और आवाधाकाण्डक दोनों ही तुल्य संख्यातगुणे हैं । आयुकी जघन्य आबाधा संख्यातगुणी है । उसीका जघन्य
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