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४, २, ६, १२८.] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे.अप्पाबहुअपरूवणा [ २७१ संखेजगुणाणि चेव । कथं ? समऊणजहण्णाबाहाए उक्कस्साबाहादो सोहिदाए आबाहहाणुप्पत्तीदो । कधमाबाहट्ठाणेहि आबाहाकंदयसलागाणं सरिसत्तं ? ण एस दोसो, एगेगाबाहट्ठाणस्स पलिदोवमस्स असंखेजदिभागमेत्तहिदिबंधट्ठाणाणमाबाहाकंदयसण्णिदाणं उवलंभेण समाणत्ता।
उक्कस्सिया आवाहा विसेसाहियां ॥ १२६ ॥ केत्तियमेत्तेण ? समऊणजहण्णाबाहमेत्तेण ।
णाणापदेसगुणहाणिट्टाणंतराणि असंखेज्जगुणाणिं ॥१२७॥
कुदो ? उक्कस्साबाहाओ संखेज्जावलियमेत्ताओ होदृण सण्णीसु पजत्तएसु संखेजवस्साणि अपजत्तएसु अंतोमुहुत्तं होति । णाणापदेसगुणहाणिहाणंतराणि पुण असंखेजवस्साणि होदृण पलिदोवमस्स असंखेजदिभागमेत्ताणि । तेण उक्कस्सआबाहादो णाणापदेसगुणहाणिहाणंतराणि असंखेजगुणाणि त्ति जुजदे। .
एयपदेसगुणहाणिट्ठाणंतरमसंखेज्जगुणं ॥ १२८॥
समाधान- क्योंकि, उत्कृष्ट आबाधामेंसे एक समय कम जघन्य आबाधाको घटा देनेपर आबाधास्थानोंकी उत्पत्ति होती है। .
शंका-आवाधास्थानोंसे आबाधाकाण्डकशलाकायें समान कैसे हैं?
समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, एक एक आबाधास्थान सम्बन्धी जो पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र स्थितिबन्धस्थान हैं उनकी आबाधाकाण्डक संज्ञा है अत एव उनके समानता है ही।
उनसे उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है ॥ १२६ ॥ शंका-वह कितने प्रमाणसे अधिक है ? समाधान-वह एक समय कम जघन्य आवाधाके प्रमाणसे अधिक है। नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर असंख्यातगुणे हैं ॥ १२७॥
कारण कि उत्कृष्ट आबाधायें संख्यात आवली प्रमाण हो करके संशी पर्याप्तक जीवों में संख्यात वर्ष और अपर्याप्तकोंमें अन्तर्मुहूर्त प्रमाण होती हैं । परन्तु नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर असंख्यात वर्ष प्रमाण हो करके पल्योंपमके असंख्यातवें भाग मात्र हैं। अतएव उत्कृष्ट आबाधाकी अपेक्षा नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तरोंका असंख्यातगुणा होना उचित ही है।
एकप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर असंख्यातगुणा है ॥ १२८ ॥
१ तेभ्य उत्कृष्टाबाधा विशेषाधिका, जघन्याबाधायास्तत्र प्रवेशात् (४)। क. प्र.(म.टी.) १,८६. २ ततो दलिकनिषेकविधौ द्विगुणहानिस्थानानि असंख्येयगुणानि, पल्योपमप्रथमवर्गमूलासंख्येयभागगतसमयप्रमाणस्वात् (५)। क.प्र. (म.टी.)१,८६. ३ तत एकस्मिन् द्विगुणहान्योरन्तरे निषेकस्थानान्यसंख्येयगुणानि, तेषामसंख्येयानि पल्योपमवर्गमूलानि परिमाणमितिं कृत्वा (६)। क. प्र. (म. टी.) १,८६.
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