Book Title: Shatkhandagama Pustak 11
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 299
________________ २७४ ] छक्खंडागमे वेयणाखंडं [४, २, ६, १३६. ___ जहण्णओ हिदिबंधो णाम अंतोमुहुत्तमेत्तो', आबाहाहाणाणि पुण संखेजपमाणपुव्वकोडितिभागमेत्ताणि; तेण जहण्णहिदिबंधादो आबाहट्टाणाणं संखेजगुणत्तं णव्वदे । उक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया ॥ १३६ ॥ केत्तियमेत्तेण ? समऊणजहण्णाबाहमेत्तेण । णाणापदेसगुणहाणिट्ठाणंतराणि असंखेज्जगुणाणि ॥ १३७ ॥ पुव्वकोडितिभाग पेक्खिदूण पलिदोवमस्स असंखेजदिमागमेत्तणाणागुणहाणिसलागाणमसंखेजगुणत्तुवलंभादो। एयपदेसगुणहाणिट्ठाणंतरमसंखेज्जगुणं ॥ १३८ ॥ कुदो ? पलिदोवमपढमवग्गमूलस्स असंखेजदिभागमेत्तणाणापदेसगुणहाणिहाणंतरसलागाहि असंखेजपलिदोवमवग्गमूलमेत्तएगपदेसगुणहाणीए ओवट्टिदाए असंखेजरूवुवलंभादो। ठिदिबंधट्टाणाणि असंखेज्जगुणाणि ॥ १३९ ॥ कुदो ? एयपदेसगुणहाणिहाणंतर णाम पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो, ठिदिबंधहाणाणि पुण संखेजसागरोवममेत्ताणि पलिदोवमस्सासंखेजदिभागो च; तेण एगपदेसगुण जघन्य स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है, परन्तु आवाधास्थान संख्यात प्रमाण [जघन्य आबाधासे रहित ] पूर्वकोटित्रिभाग मात्र हैं। इसीसे जाना जाता है कि जघन्य स्थितिबन्धकी अपेक्षा आबाधास्थान संख्यातगुणे हैं। उनसे उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है ॥ १३६ ॥ कितने प्रमाणसे वह अधिक है ? एक समय कम जघन्य आवाधाके प्रमाणसे वह विशेष अधिक है। नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर असंख्यातगुणे हैं ॥ १३७ ॥ क्योंकि, पूर्वकोटित्रिभागकी अपेक्षा पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण नानागुणहानिशलाकाओंके असंख्यातगुणत्व पाया जाता है। एकप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर असंख्यातगुणा है ॥ १३८ ॥ क्योंकि, पल्योपम सम्बन्धी प्रथम वर्गमूलके असंख्यातवें भाग मात्र नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तरशलाकाओंका पल्योपमके असंख्यात वर्गमूलोंके बराबर एकप्रदेशगुणहानिमें भाग देनेपर असंख्यात अंक पाये जाते हैं। स्थितिबन्धस्थान असंख्यातगुणे हैं ॥ १३९ ॥ क्योंकि, एकप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण है, परन्तु स्थितिबन्धस्थान संख्यात सागरोपम मात्र व पल्योपमके असंख्यातवें भाग हैं। इस कारण १ अ-आ-काप्रतिषु 'मेत्ता' इति पाठः। २ प्रतिषु ' असंखेज्ज' इति पाठः। ३ अ-आप्रत्योः 'पलिदोवमस्स संखे० भागो' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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