________________
४, २, ६, १२०.] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे णिसेयपरूवणा [ २६५ हाणीयो होति । ७६८ । १५' । पुणो एदाहि सव्वदव्वे भागे हिदे बिदियणिसेयो आगच्छदि । एवं जाणिदूण णेदव्वं जाव अग्गट्ठिदिभागहारो त्ति । णवरि अग्गट्ठिदिभागहारो अंगुलस्स असंखेजदिभागो असंखेजओसप्पिणि-उस्सप्पिणिमेत्तो। तस्स पमाणमेदं ३०७२ । ९ । एदेण समयपबद्धे भागे हिदे चरिमणिसेयो आगच्छदि । एवं भागहारपरूवणा समत्ता ।
पढमाए हिदीए पदेसग्गं सव्वहिदिपदेसग्गस्स केवडियो भागो ? असंखेजदिभागो, दिवड्डगुणहाणीए खंडिदे तत्थ एगखंडमेत्तं ति वुत्तं होदि । एवं णेदव्वं जाव पढमगुणहाणिचरिमणिसेगो त्ति । बिदियगुणहाणिपढमणिसेगो सव्वढिदिपदेसग्गस्स केवडिओ भागो ? असंखेजदिभागो। को पडिभागो ? तिण्णि गुणहाणीयो । एवं जाणिदूण णेदव्वं जाव चरिमगुणहाणिचरिमणिसेगो त्ति । एवं भागाभागपरूवणा समत्ता।।
सव्वत्थोवं चरिमाए हिदीए पदेसग्ग ९ । पढमाए हिदीए पदेसग्गमसंखेजगुणं । को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेजदिभागमेत्ता किंचूणण्णोण्णभत्थरासी। तस्स पमाणमेदं २५६ । ९ । एदेण चरिमणिसेगे गुणिदे पढमणिसेगो होदि । २५६ । छह गुणहानियां होती हैं--१६ +६= १६६६ ५१६ । इनका सब द्रव्यमें भाग देनेपर तृतीय गुणहानिका द्वितीय निषेक आता है-३०७२ १५ = ६० । इस प्रकार जानकर अग्रस्थिति भागहार तक ले जाना चाहिये । विशेष इतना है कि अग्रस्थिति भागहार अंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र है जो असंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणियोंके बराबर है। उसका प्रमाण यह है - 3०७२ । इसका समयप्रबद्धमें भाग देनेपर अन्तिम निषेक प्राप्त होता है-३०७२: ३०९७२- = ९| इस प्रकार भागहार प्ररूपणा समाप्त हुई।
प्रथम स्थितिका प्रदेशपिण्ड समस्त स्थितियोंके प्रदेशपिण्डके कितने भाग प्रमाण है ? उनके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। समस्त स्थितियोंके प्रदेशपिण्डमें डेढ़ गुणहानिका भाग देनेपर जो प्राप्त हो (३०७२-१२-२५६) उतने मात्र यह है, यह उसका अभिप्राय है। इस प्रकार प्रथम गुणहानिके अन्तिम निषेक तक ले जाना चाहिये । द्वितीय गुणहानिका प्रथम निषेक समस्त स्थितियों के प्रदेशपिण्डके कितनेवें भाग प्रमाण है ? वह उसके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। प्रतिभाग क्या है ? प्रतिभाग तीन गुणहानियां हैं। इस प्रकार जानकर अन्तिम गुणहानिके अन्तिम निषेक तक ले जाना चाहिये । इस प्रकार भागाभाग प्ररूपणा समाप्त हुई। । ___अन्तिम स्थितिका प्रदेशपिण्ड सबसे स्तोक (९) है। प्रथम स्थितिका प्रदेशपिण्ड उससे असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? गुणकार पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र कुछ कम अन्योन्याभ्यस्त राशि है। उसका प्रमाण यह है-३५६। इसके द्वारा अन्तिम
१अ-आ-ताप्रतिषु ७६८ । ५ । एवंविधात्र संदृष्टिरस्ति । २ अप्रतो 'भागो असंखेज्जाओसप्पिणि'. आ-काप्रत्योः 'भागो असंखेज्जासंखेज्जओसप्पिणि', ताप्रती 'भागो असंखेज्जाओ [ संखेज्जाओ ] ओसप्पिणि ! इति पाठः। ३ मप्रतिपाठोऽयम् । अ-आ-का-ताप्रतिषु ३०७३ इति पाठः। ४ का-ताप्रत्योः २५६ । ४ । एवंविधान संदृष्टिरस्ति।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org