________________
४, २, ६, ९४.] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे ठिदिबंधट्टाणपरूवणा [२३५
को गुणगारो ? संखेजा समया । कुदो ? सागरोवमसहस्सेण अंतोकोडाकोडीए ओवट्टिदाए संखेजसमओवलंभादो।
संजदासंजदस्स जहण्णओ हिदिबंधो संखेज्जगुणो ॥ ९१ ॥
कुदो मिच्छत्ताहिमुहचरिमसमयपमत्तैसंजदुक्कस्सटिदिबंधादो वि संजदासंजदजहण्णहिदिबंधो संखेजगुणो त्ति ? ण, देसघादिसंजलणोदयं पेक्खिदूण सव्वघादिपच्चक्खाणोदयस्स अणंतगुणत्तादो। ण च कारणे थोवे संते कज्जस्स बहुत्तं संभवइ, विरोहादो।
तस्सेव उक्कस्सओ द्विदिबंधो संखेज्जगुणो ॥ ९२॥ कुदो ? मिच्छत्ताहिमुहचरिमसमयसंजदासंजदउक्कस्सटिदिबंधग्गहणादो। .
असंजदसम्मादिट्ठिपज्जत्तयस्स जहण्णओ ट्ठिदिबंधो संखेज्जगुणो॥ १३॥ कुदो ? उदयगदपञ्चक्खाणादो तस्सेव गदअपच्चक्खाणस्स अणंतगुणतादो।
तस्सेव अपज्जत्तयस्स जहण्णओ हिदिबंधो संखेज्जगुणो ॥ ९४॥ गुणकार क्या है ? गुणकार संख्यात समय हैं, क्योंकि, हजार सागरोपमोंका अन्तः कोडाकोडिमें भाग देनेपर संख्यात समय प्राप्त होते हैं।
संयतासंयतका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है ।। ९१ ॥
शंका-मिथ्यात्वके अभिमुख हुए अन्तिम समयवर्ती प्रमत्तसंयतके उत्कृष्ट स्थितिबन्धसे भी संयतासंयत जीवका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा क्यों है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि देशघाती संज्वलन कषायके उदयकी अपेक्षा सर्वघाती प्रत्याख्यानावरण कषायका उदय अनन्तगुणा है । और कारणके स्तोक होनेपर कार्यका आधिक्य सम्भव नहीं है, क्योंकि, पैसा होने में विरोध हैं।
उक्त जीवका ही उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है ॥ ९२॥
कारण कि यहां मिथ्यात्वके अभिमुख हुए अन्तिम समयवर्ती संयतासंयतके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका ग्रहण किया गया है।
असंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है ॥ ९३ ॥
कारण कि उसके प्रत्याख्यानाधरणके उदयकी अपेक्षा अप्रत्याख्यानाधरणका उदय अनन्तगुणा है।
उसीके अपर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है ॥ ९४ ॥
१ अ-आ-का प्रतिषु 'समयपत्त' इति पाठः।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org