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२३४ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, ६, ८६. - केत्तियमेत्तेण ? चउरिंदियअपञ्जत्तहिदिबंधट्ठाणेहितो संखेजगुणेण चउरिंदियअपजत्तउक्कस्सट्ठिदिबंधादो उवरिमेण चउरिंदियपजत्तवीचारट्ठाणमेत्तेण विसेसाहिओ।
असण्णिपंचिंदियपज्जत्तयस्स जहण्णओ ट्ठिदिबंधो संखेज्जगुणो ॥ ८६ ॥ को गुणगारो ? संखेजा. समया । कारणं सुगमं ।
तस्सेव अपज्जत्तयस्स जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ ॥ ८७ ॥ केत्तियमेत्तो विसेसो ? पलिदोवमस्स संखेजदिभागमेतो' । तस्सेव अपज्जत्तयस्से उक्कस्सओ द्विदिबंधो विसेसाहिओ ॥८८॥ केत्तियमेत्तो विसेसो ? सगवीचारहाणमेत्तो ।
तस्सेव पज्जत्तयस्स उक्कस्सओ हिदिबंधो . विसेसाहिओ ॥८९॥ केत्तियमेत्तो विसेसो ? पलिदोवमस्स संखेजदिभागमेत्तो।
संजदस्स उक्कस्सओ द्विदिबंधो संखज्जगुणो ॥ ९०॥ वह कितने प्रमाणसे अधिक है ? वह चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तकके स्थितिबन्धस्थानोंसे संख्यातगुणे ऐसे चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तके उत्कृष्ट स्थितिबन्धसे ऊपरके चतुरिन्द्रिय पर्याप्तके पीचारस्थानप्रमाणसे विशेष अधिक है।
असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है ॥ ८६ ॥ गुणकार क्या है ? गुणकार संख्यात समय हैं । इसका कारण सुगम है।
उसी अपर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ॥ ८७॥ विशेष कितना है ? वह पल्योपमके संख्यातवें भाग प्रमाण हैं।
उसी अपर्याप्तकका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ॥ ८८ ॥ विशेष कितना है ? वह अपने वीचारस्थानके बराबर है। .
उसीके पर्याप्तकका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ॥ ८९॥ विशेष कितना है ? वह पल्योपमके संख्यातवें भाग प्रमाण है।
संयतका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है ॥ ९० ॥ १ काप्रती 'सगवीचारहाणमेत्तो' इति पाठः। २ अ-आ-का-प्रतिषु 'पज्जत्तयस्स' हति पाठः ।
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