Book Title: Shatkhandagama Pustak 11
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२५४ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, ६, १११. असंखेजदिभागं गंतूण ज़दि एगा दुगुणहाणिसैलागा लब्भदि तो कम्मट्टिदिअभंतरसंखेजपलिदोवमेसु केत्तियाओ दुगुणहाणिसलागाओ लभामो त्ति पलिदोवमस्स असंखेजदिभागेण कम्महिदीए ओवट्टिदाए पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो उवलब्भदि त्ति आबाधूणकम्महिदीए एगगुणहाणीए भागे हिदाए रूवणणाणागुणहाणिसलागाओ एक्किस्से गुणहाणिसलागाए असंखेजा भागा च आगच्छंति । कुदो ? णाणागुणहाणिसलागाहि कम्मट्टिदीए ओवट्टिदाए एगगुणहाणी आगच्छदि त्ति गुरुवदेसादो । तम्हा सव्वकम्माणं णाणागुणहाणिसलागाओ सच्छेदाओ होति । अद्धगुणहाणिणा आबाधाऊणकम्मट्ठिदीए ओवट्टिदाए जदि अच्छेदरासी आगच्छदि तो णाणागुणहाणिसलागाहि सयलकम्महिदीए ओवष्टिदाए सादिरेयगुणहाणिअद्धाणमागच्छदि । कुदो ? णाणागुणहाणिसलागाहि अहियाबाहाए ओवष्टिदाए एगरुवस्स असंखेदिमागुवलंभादो। ण च णाणागुणहाणिसलागाणं गुणहाणिअद्धाणस्स वा सच्छेदत्तं, तहोवएसाभावादो। तम्हा गुणहाणिणा आबाहूणेकम्महिदीए ओवट्टिदाए णाणागुणहाणिसलागाओ आगच्छंति । पुणो ताहि वि ताए ओवट्टिदाए एगगुणहाणिअद्धाणमागच्छदि त्ति घेत्तव्वं । एत्थ गुणहाणिअद्धाणं सव्वकम्माणमवहिदं । कुदो ? अण्णोण्णभत्थरासीणं विसरिसत्तब्भुवगमादो । तदो
पल्पोपमके असंख्यातवें भाग जाकर यदि एक दुगुणहानिशलाका प्राप्त होती है तो कर्मस्थितिके भीतर असंख्यात पल्योपमोंमें कितनी दुगुणहानिशलाकायें प्राप्त होंगी, इस प्रकार पल्योपमके असंख्यातवें भागसे कर्मस्थितिको अपवर्तित करनेपर पल्योपमका असंख्यातवां भाग प्राप्त होता है । अत एव आवाधासे हीन कर्मस्थितिमें एक गुणहानिका भाग देनेपर एक कम नानागुणहानिशलाकायें और एक गुणहानिशलाकाके असंख्यात बहुभाग आते हैं, क्योंकि, नानागुणहानिशलाकाओंका कर्मस्थितिमें भाग देनेपर एक गुणहानि लब्ध होती है, ऐसा गुरुका उपदेश है । इस कारण सब कमौकी नानागुणहानिशलाकायें सछेद होती हैं। अर्ध गुणहानिका आवाधासे हीन कर्मस्थितिमें भाग देनेपर यदि अछेद राशि प्राप्त होती है, (ऐसा अभीष्ट है) तो नानागुणहानिशलाकाओंका समस्त कर्मस्थितिमें भाग देनेपर साधिक गुणहानि अध्यान आता है, क्योंकि, नानागुणहानिशलाकाओंसे अधिक आवाधाको अपवर्तित करनेपर एक रूपका असंख्यातवां भाग पाया जाता है। परन्तु नानागुणहानिशलाकायें अथवा गुणहानिअध्वान सछेद नहीं हैं, क्योंकि, वैसा उपदेश नहीं है । इस कारण आबाधासे हीन कर्मस्थिति में गुणहानिका भाग देनेपर नानागुणहानिशलाकायें प्राप्त होती हैं । पश्चात् उनके द्वारा उसीको अपवर्तित करनेपर एक गुणहानि अध्वान आता है, ऐसा ग्रहण करना चाहिये । यहां सब कर्मोंका गुणहानिअध्वान अवस्थित है, क्योंकि, अन्योन्याम्यस्त राशियां विसदृश स्वीकार की गई हैं।
.. १ ताप्रती 'एगा गुणहाणि-' इति पाठः। २ अ-आ-काप्रतिषु 'आवाहाण' इति पाठः
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