Book Title: Shatkhandagama Pustak 11
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 277
________________ २५२] छक्खंडागमे वेयणाखंडं [४, २, ६, ११०. परमाउदंसणादो । एदाओ आबाहाओ वजिदूण पदेसरचणा कीरदि ति उत्तं होदि । पदेसविण्णासस्स आयामो पुण असण्णिपंचिंदियपजत्तएसु आउअस्स पलिदोवमस्स असंखेजदिभागमेत्तो; तत्थ पलिदोवमस्स असंखेजदिभागमेत्तणिरयाउहिदीए बंधुवलंभादो । चउरिंदियादीणं आउअस्स पदेसविण्णासायामो पुव्वकोडिमेत्तो चेव, तत्थ एदम्हादो अहियबंधाभावादो । सेसं सुगमं । पंचिंदियाणमसण्णीणं चउरिदियाणं तीइंदियाणं बीइंदियाणं बादरेइंदियअपज्जत्तयाणं सुहुमेइंदियपज्जत्तअपज्जत्तयाणं सत्तण्हं कम्माणमाउववज्जाणमंतोमुहत्तयाबाधं मोत्तूण जं पढमसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं बहुगं, जं बिदियसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं विसेसहीणं, जं तदियसमए पदेसग्गं निसित्तं तं विसेसहीणं, एवं विसेसहीणं विसेसहीणं जाव उक्कस्सेण सागरोवमसदस्स सागरोवमपण्णासाए सागरोवमपणुवीसाए सागरोवमस्स तिण्णिसत्तभागा, सत्त-सत्तभागा, बे-सत्तभागा पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागेण ऊणया पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण ऊणया ति ॥ ११० ॥ प्रमाण उत्कृष्ट आयु देखी जाती है । इन आबाधाओं को छोड़कर प्रदेशरचना की जाती है, यह उक्त कथनका अभिप्राय है। परन्तु असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक जीवोंमें आयु कर्म के प्रदेशविन्यासका आयाम पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण है, क्योंकि, उनमें पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण नारकायुका स्थितिबन्ध पाया जाता है । चतुरिन्द्रिय आदिक जीवोंके आयु कर्मके प्रदेशविन्यासका आयाम पूर्वकोटि प्रमाण ही है, क्योंकि, उनमें इससे अधिक स्थितिबन्धका अभाव है। शेष कथन सुगम है। असंज्ञी पंचेन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, त्रीन्द्रिय द्वीन्द्रिय और बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तक तथा सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तक एवं अपर्याप्तक जीवोंके आयु कर्मसे रहित शेष सात कर्मोंकी अन्तर्मुहूर्त मात्र आबाधाको छोड़कर प्रथम समयमें जो प्रदेशपिण्ड निषिक्त है वह बहुत है, द्वितीय समयमें जो प्रदेशपिण्ड निषिक्त है वह उससे विशेषहीन है, तृतीय समयमें जो प्रदेशपिण्ड निषिक्त है वह उससे विशेषहीन है, इस प्रकार उत्कर्षसे सौ सागरोपम, पचास सागरोपम, पच्चीस सागरोपम और एक सागरोपमके सात भागोंमेंसे पल्योपमके असंख्यातवें भागसे हीन तीन, सात और दो भाग तक विशेषहीन विशेषहीन होता चला गया है ॥ ११०॥ १ तातौ ' उक्कस्सेण [सागरोवमसहस्सस्स ] सागरोवम ' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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