Book Title: Shatkhandagama Pustak 11
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 285
________________ २६०] छक्खंडागमे वेयणाखंड . [४, २, ६, १२०. २५६ । पुणो एदे' गुणहाणिअद्धमत्तपढमणिसेगे घेत्तूण गुणहाणिमेत्तपढमणिसेगेसु पक्खित्तेसु दिवड्वगुणहाणिमेत्तपढमणिसेया होंति २५६ । १२ । पुणो सेसअधियदवे वि पढमणिसेयपमाणेण कदे तस्सद्धमेतं होदि १२८ । पुणो एदमप्पहाणं काढूण पढमणिसेगेण दिवगुणहाणीए गुणिदाए सव्वदव्वमेत्तियं होदि ३०७२ । पुणो एदम्हि दिवडगुणहाणीए १२ । भागे हिदे पढमणिसेयो आगच्छदि । एवं पढमणिसेयपमाणेण सव्वदव्वं दिवड्डगुणहाणिहाणंतरेण कालेण अवहिरिज्जदि त्ति सिद्धं । बिदियाए द्विदीए पदेसग्गपमाणेण सव्वहिदिपदेसग्गं केवचिरेण कालेण अवहिरिजदि ? सादिरेयदिवड्डगुणहाणिहाणंतरेण कालेण । तं जहा—दिवड्वगुणहाणीयो विरलेदूण सव्वदव्वं समखंड कादूण दिण्णे एक्केक्कस्स रुवस्स पढमणिसेयपमाणं पावदि । पुणो हेट्ठा णिसेगभागहारं विरलेदूण उवरिमेगस्वधरिदं समखंडं कादृण दिण्णे विरलणवं पडि एगेग-गोवुच्छविसेसपमाणं पावदि । पुणो एदेण पमाणेण उवरिमसव्ववधरिदेसु अवणिदेसु दिवगुणहाणिमेत्तगोवुच्छविसेसा अधिया होति । पुणो उव्वरिददव्वं पि दिवडगुणहाणिमेत्तबिदियणिसेयपमाणं होदि । पुणो अधियगोवुच्छविसेसे बिदियणिसेयपमाणेण कस्सामो। प्रथम निषेक होते हैं। उनका प्रमाण यह है--२५६, २५६, २५६, २५६ । पश्चात् गुणहानिके अध भाग प्रमाण इन प्रथम निषेकोंको ग्रहण करके गुणहानिके बराबर प्रथम निषेकोंमें मिला देनेपर डेढ़ गुणहानि प्रमाण प्रथम निषेक होते हैं-२५६४१२। अवशिष्ट अधिक द्रव्यको भी प्रथम निषेकके प्रमाणसे करनेपर वह उसके अर्ध भागके बराबर होता है १२८ । अब इसको गौण करके प्रथम निषेकसे डेढ़ गुणहानिको गुणित करनेपर सब द्रव्य इतना होता है-२५६४१२=३०७२ । इसमें डेढ़ गुणहानिका (१२) भाग देनेपर प्रथम निषेक प्राप्त होता है । इस प्रकार प्रथम निषेकके प्रमाणसे सब द्रव्य डेढ़ गुणहानिस्थानान्तरकालसे अपहृत होता है, यह सिद्ध होता है। द्वितीय स्थिति सम्बन्धी प्रदेशाग्रके प्रमाणसे सब स्थितियोंका प्रदेशपिण्ड कितनेकालसे अपहृत होता है ? वह साधिक डेढ़ गुणहानिस्थानान्तरकालसे अपहृत होता है। यथा-डेढ गुणहानियोंको विरलित करके सब द्रव्यको समखण्ड करके देनेपर एक एक अंकके प्रति प्रथम निषेकका प्रमाण प्राप्त होता है ( ३०७२-१२-२५६)। इसके नीचे निषेकभागहारका विरलन कर उपरिम एक अंकके प्रति प्राप्त राशिको समखण्ड करके देनेपर विरलन अंकके प्रति एक एक गोपुच्छविशेषका प्रमाण प्राप्त होता है (२५६:१६=१६) । इस प्रमाणसे ऊपरकी सब एक अंकके प्रति प्राप्त राशियोंका अपनयन करनेपर डेढ़ गुणहानि प्रमाण गोपुच्छविशेष अधिक होते हैं (१६४१२-१९२)। अवशिष्ट द्रव्य भी डेढ़ गुणहानि मात्र द्वितीय निषेकके बराबर होता है (२४०x१२-२८८०)। १ ताप्रतौ 'एदेण' इति पाठः। २ ताप्रतौ 'एदं' इति पाठः। ३ प्रतिषु ' एवं ' इति पाठः। ४ आप्रतौ ' उवरिददव्वं', ताप्रतौ ' उवरि दन्वं' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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