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छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ६, १९८० णाणापदेसगुणहाणिट्ठाणंतराणि पलिदोवमवग्गमूलस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ११८ ॥
एदं पि सुगमं ।
णाणापदेसगुणहाणिट्ठाणंतराणि थोवाणि ॥ ११९ ॥ गुणहाणिणा कम्मट्टिदीए ओवट्टिदाए तेसिमुप्पत्तिदंसणादो।
एयपदेसगुणहाणिट्ठाणंतरमसंखेज्जगुणं ॥ १२० ॥ को गुणगारो ? असंखेजाणि पलिदोवमवग्गमूलाणि । एवं परम्परोवणिधा समत्ता।
संपहि सेढिपरूवणाए सूचिदाणमवहार-भागाभाग-अप्पाबहुआणियोगद्दाराणं परवणं कस्सामो । तं जहा-सव्वासु हिदीसु पदेसग्गं पढमाए हिदीए पदेसपमाणेण केवचिरेण कालेण अवहिरिजदि ? दिवड्डगुणहाणिहाणंतरेण कालेण अवहिरिजदि । एदस्स कारणं बुच्चदे । तं जहा—बिदियादिगुणहाणिदव्वे पढमगुणहाणिदव्वपमाणेण कदे चरिमगुणहाणि
नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर पल्योपमके वर्गमूलके असंख्यात भाग प्रमाण है॥११८॥ यह सूत्र भी सुगम है। नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर स्तोक हैं ॥ ११९ ॥ कारण कि गुणहानि द्वारा कर्मस्थितिको अपवर्तित करनेपर उनकी उत्पत्ति देखी
एकप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर असंख्यातगुणा है ॥ १२० ॥
गुणकार क्या है ? गुणकार पल्योपमके असंख्यात वर्गमूल हैं । इस प्रकार परम्परोपनिधा समाप्त हुई। __अब श्रेणिप्ररूपणा द्वारा सूचित अवहार, भागाभाग और अल्पबहुत्व अनुयोगद्वारोंकी प्ररूपणा करते हैं । वह इस प्रकार है-सब स्थितियोंका प्रदेशपिण्ड प्रथम स्थितिके प्रदेशपिण्डके प्रमाण द्वारा कितने कालसे अपहृत होता है ? उक्त प्रमाणके द्वारा वह डेंद गुणहानिस्थानान्तरकालसे अपहृत होता है । इसका कारण बतलाते हैं । वह इस प्रकार है-द्वितीयादिक गुणहानियों के द्रव्यको प्रथम गुणहानिके द्रव्यप्रमाणसे करनेपर वह अन्तिम गुणहानिके द्रव्यसे रहित प्रथम गुणहानिका द्रव्य होता है। उसका प्रमाण यह है
द्वि.गु. १२८ १२० ११२ १९४ ९६ ८८
जाती है।
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प. " योग अन्तिम गुण. प्रथम गुण. | २५६ २४० २२४ २०८ १९२ १७६ १६० १४४
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