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२५०] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, ६, १०८. बे-सत्तभामा पडिवुण्णा ति ॥ १०८ ॥
एत्य पुल्वाणुपुवीए जेण णिदेसो कदो तेण असाणपंचिंदियाणं सागरोवमसहस्सस्से तिण्णि-सत्तभागा चदुण्णं कम्माणमणुकस्सहिदी होदि, मोहणीयस्स सत्त-सत्तभागा, णामागोदाणं बे-सत्तभागा । चउरािंदियाणं सागरोवमसदस्स तिण्णि-सत्तभागा चदुण्णं कम्माणमुक्कस्सहिदी होदि, मोहणीयस्स सत्त-सत्तभागा, णामा-गोदाणं बे-सत्तभागा। तीइंदियपजत्तएसु सागरोवमपण्णासाए तिण्णि-सत्तभागा चतुण्डं कम्माणं उक्कस्सहिदी, मोहणीयस्स सत्त-सत्तभागा, णामा-गोदाणं बेसत्तभागा होदि । बीइंदियपजत्तएसु सागरोवमपणुवीसाए तिण्णि-सत्तभागा चदुण्णं कम्माणमुक्कस्सहिदी, मोहणीयस्स सत्त-सत्तभागा, णामा-गोदाणं बे-सत्तभागा होदि । बादरएइंदियपज्जत्तएसु सागरोवमाए तिण्णि-सत्तभागा चदुण्णं कम्माणमुक्कस्सहिदी, मोहणीयस्स सत्त-सत्तभागा, णामा-गोदाणं बे-सत्तभागा होदि । एत्थ एदाओ द्विदीओ तेरासियकमेण जाणिदूण आणेदव्वाओ । सत्तरिकोडाकोडिस्वेहि सत्तवाससहस्समोवट्टिय लद्धे सग-सगकमहिदीणं सागरोवमसलागाहि गुणिदे इच्छिदजीवसमासकम्महिदीणमाबाहाओ होति । सेसं जाणिय वत्तव्वं ।
और दो भागों ( २१७) तक चला गया है ॥ १०८ ॥ ___ यहाँ सूत्रमें चूंकि पूर्वानुपूर्वीके क्रमसे निर्देश किया गया है, अतः असंशी पंचेन्द्रिय जीवोंके चार कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थिति हजार सागरोपमोंके तीन-सात भाग (3) प्रमाण, मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थिति सात-सात भाग (७) प्रमाण, और नाम-गोत्रकी दो-सात भाग (3) प्रमाण है । चतुरिन्द्रिय जीवोंके चार कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थिति सौ सागरोपमोंके तीन-सात भाग प्रमाण, मोहनीयकी सात-सात भाग प्रमाण और नाम-गोत्रकी दो सात भाग प्रमाण है । श्रीन्द्रिय पर्याप्तक जीवों में चार कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थिति पचास सागरोपमोंके तीन सात भाग, मोहनीयकी सात-सात भाग और नाम-गोत्रकी दो-सात भाग प्रमाण है। द्वीन्द्रिय पर्याप्तक जीवोंमें चार काकी उत्कृष्ट स्थिति पच्चीस सागरोपमोके तीन-सात भाग, मोहनीयकी सात-सात भाग और नाम-गोत्रकी दो सात भाग प्रमाण है। बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तक जीवों में चार काँकी उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपमके तीन-सात भाग, मोहनीयकी सात-सात भाग और नाम-गोत्रकी दो सात भाग प्रमाण है। यहां इन स्थितियोंको त्रैराशिक क्रमसे जानकर ले जाना चाहिये । सत्तर कोड़ाकोड़ि रूपोंसे सात हजार वर्षोंको अपवर्तित करके जो लब्ध हो उसे अपनी कर्मस्थितियोंकी सागरोपमशलाकाओं द्वारा गुणित करनेपर अभीष्ट जीवसमासकी कर्मस्थितियोंकी आवाधायें होती हैं। शेष कथन जानकर करना चाहिये।
१ अ-आ-काप्रतिषु सहस्स' इति पाठः। २ अप्रतो 'कम्माणमणुक्कट्ठिदी', आ-काप्रत्योः 'कम्माणमणुक्कस्सट्ठिदी' इति पाठः। ३ ताप्रतो 'गोदार्ण चेय वेसत्तमागा' इति पाठः । ४ ताप्रतो 'सगकम्म' इति पाठः।
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