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४, २, ६, ८५.] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे ठिदिबंधट्ठाणपरूवणा [ २३३
तीइंदियअपजत्तयस्स उक्कस्सहिदीदो उवरिमतेइंदियपजत्तवीचारहाणेहि पलिदोवमस्स संखेजदिभागमेत्तेहि विसेसाहिओ ।
चउरिंदियपज्जत्तयस्स जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ ॥ ८२ ॥ केत्तियमत्तो विसेसो ? पलिदोवमस्स संखेजदिभागेणूणपण्णाससागरोवममेत्तो।
तस्सेव अपज्जत्तयस्स जहण्णओ हिदिबंधों विसेसाहिओ ॥ ८३॥
केत्तियमेत्तो विसेसो ? पलिदोवमस्स संखेजदिभागमेत्तो। कुदो ? चउरिंदियअपजत्तजहण्णद्विदिबंधादो हेट्ठो पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागमेत्तहिदिबंधट्ठाणाणि चउरिंदियअपजत्तद्विदिबंधट्ठाणेहिंतो संखेजगुणाणि ओसरिय चउरिंदियपजत्तजण्णटिदिबंधावट्ठाणादो ।
तस्सेव अपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ ॥ ८४॥ केत्तियमत्तो विसेसो १ पलिदोवमस्स संखेजदिभागमेत्तो ।
तस्सेव पज्जत्तयस्स उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ ॥ ८५॥ वह त्रीन्द्रिय अपर्याप्तकके उत्कृष्ट स्थितिबन्धसे ऊपरके पल्योपमके संख्यातवें भाग मात्र एकेन्द्रियके वीचारस्थानोंसे विशेष अधिक है।
. चतुरिन्द्रिय पर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ।। ८२ ॥
विशेषका प्रमाण कितना है? उसका प्रमाण पल्योपमके संख्यातवें भागसे हीन पचास सागरोपम है।
उसी अपर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ॥ ८३ ॥ विशेषका प्रमाण कितना है? उसका प्रमाण पल्योपमका संख्यातवां भाग है, क्योंकि चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तकके जघन्य स्थितिबन्धसे नीचे पल्योपमके संख्यातवें भाग मात्र होकर चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तकके स्थितिबन्धस्थानोंसे संण्यातगुणे स्थितिबन्धस्थान हटकर चतुरिन्द्रिय पर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध अवस्थित है।
उसी अपर्याप्तकका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ॥ ८४॥ विशेषका प्रमाण कितना है ? वह पल्योपमके संख्यात भाग प्रमाण है। उसी पर्याप्तकका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ॥ ८५॥
१ ताप्रतौ 'हेडिम' इति पाठः।२ अ-आ-का-प्रतिषु 'तस्सेव उक्कस्सओ' इति पाठः।। छ. ११-३०.
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