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४, २, ६, ७६. ] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे ठिदिबंधट्ठाणपरूवणा [२३१ वीचारहाणहितो संखेजगुणेण सुहुमेइंदियपजत्तयस्स वीचारट्ठाणेण पलिदोवमस्स असंखेजदिभागमेतेण ।
बादरेइंदियपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ ॥ ७३ ॥
सुहुमेइंदियपजत्तयस्स उक्कस्सट्ठिदिबंधादो उवरिमेहि पलिदोवमस्स असंखेजदिभागमेत्तबादरेइंदियपज्जत्तवीचारहाणेहि विसेसाहिओ।
बीइंदियपज्जत्तयस्स जहण्णओ ट्ठिदिबंधो संखेज्जगुणो ॥ ७४॥ को गुणगारो ? किंचूणपणुवीसरुवाणि । सेसं सुगमं । तस्सेव अपज्जत्तयस्स जहण्णओ ट्ठिदिबंधो विसेसाहिओ ॥ ७५॥ .
बीइंदियअपजत्तजहण्णहिदिबंधादो हेट्ठा पलिदोवमस्स संखेजदिभागमेत्तवीचारहाणाणि ओसरिय बीइंदियपजत्तयस्स जहण्णट्ठिदिबंधस्स अवट्ठाणादो ।
तस्सेव अपजत्तयस्स उक्कस्सओ ट्ठिदिबंधो विसेसाहिओ ॥ ७६ ॥
सगजहण्णहिदिबंधादो पलिदोवमस्स संखेजदिभागमेत्तवीचारहाणाणि उवरि चडिय सगुक्कस्सट्ठिदिबंधसमुप्पत्तीदो। बन्धसे ऊपरके बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तके वीचारस्थानसे संख्यातगुणे व पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकके वीचारस्थानसे अधिक है।
बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ॥ ७३॥
वह सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकके उत्कृष्ट स्थितिबन्धसे ऊपर पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तके वीचार स्थानोंसे विशेष अधिक है।
द्वीन्द्रिय पर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है ॥ ७४॥ गुणकार क्या है ? गुणकार कुछ कम पच्चीस रूप हैं । शेष कथन सुगम है।
उसी अपर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ॥ ७५ ॥
क्योंकि, द्वीन्द्रिय अपर्याप्तकके जघन्य स्थितिबन्धसे नीचे पल्योपमके संख्यातवें भाग मात्र वीचारस्थान हटकर द्वीन्द्रिय पर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध अवस्थित है।
उसी अपर्याप्तकका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ॥ ७६ ॥
क्योंकि, अपने जघन्य स्थितिबन्धसे पल्योपमके संख्यात भाग मात्र वीचारस्थान ऊपर चढ़कर अपना उत्कृष्ट स्थितिबन्ध उत्पन्न होता है ।
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