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४, २, ६, १०२.] . वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे णिसेयपरूवणा
[२३९ उक्कस्सओ द्विदिबंधो उक्कस्सिया आवाहा च परूविदा । पुव्वं तेसिं परूविदाणं पुणो परूवणा एत्थ किमडे कीरदे १ ण एस दोसो, डिदिबंधहाणपरूवणाए सूचिदाणं परूवणाए कीरमाणाए पउणरुत्तियाभावादो। जदि एवं तो एदस्साणियोगद्दारस्स णिसेयपरूवणा त्ति ववएसो कधं जुज्जदे ? ण, णिसेयरचणाए पहाणभावेणे तस्स तव्ववएससंभवादो।
___असण्णिपडिसेहट्ट सण्णीणमिदि णिद्देसो कदो। सम्मादिट्ठीसु उक्कस्सहिदिबंधपडिसेहढे मिच्छाइट्ठीणमिदि णिद्देसो कदो। अपजत्तकाले उव कस्सटिदिबंधो पत्थि त्ति जाणावणटुं पजत्तयमिदि णिद्देसो कदो । सेसकम्मपडिसेहट्ट णाणावरणादिणिदेसो कदो। उक्कस्सहिदिं बंधमाणस्स तिसु वाससहस्सेसु पदेसणिक्खेवो णस्थि त्ति जाणावणटुं तिण्णिवाससहस्साणि आबाहं मोत्तूणे त्ति भणिदं ।
___एत्थ एदेहि दोहि अणियोगद्दारेहि सेडिपवणासामण्णेण एगत्तमावण्णेहि सेसपंचणियोगद्दाराणि जेण कारणेण सूचिदाणि तेण एत्थ परूवणा पमाणं सेडी अवहारो
शंका-स्थितिबन्धस्थानप्ररूपणामें उत्कृष्ट स्थितिबन्ध और उत्कृष्ट आवाधाकी भी प्ररूपणा की जा चुकी है । अतः पूर्वमें प्ररूपित उन दोनोंकी प्ररूपणा यहां फिरसे किस लिये की जा रही है ?
समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, स्थितिबन्धस्थान प्ररूपणामें उन दोनोंकी सूचना मात्र की गई है । अतः एव उनकी यहां प्ररूपणा करने में पुनरुक्ति दोषकी सम्भावना नहीं है।
शंका-यदि ऐसा है तो फिर इस अनुयोगद्वारकी ‘निषेक-प्ररूपणा' यह संज्ञा कैसे उचित है ?
समाधान नहीं, क्योंकि निषेक रचनाकी प्रधानता होनेसे उसकी उक्त संक्षा सम्भव ही है।
असंशियोंका प्रतिषेध करने के लिये सूत्रमें 'सण्णीणं' पदका निर्देश किया गया है। सम्यग्दृष्टि जीवों में उत्कृष्ट स्थितिबन्धका निषेध करनेके लिये 'मिच्छाइट्ठीणं ' पदका उपादान किया है । अपर्याप्तकालमें उत्कृष्ट स्थितिबन्ध नहीं होता, इस बातके ज्ञापनार्थ 'पर्याप्तक' का ग्रहण किया है । शेष कर्मों का प्रतिषेध करनेके लिये झानावरणादिकोंका निर्देश किया है । उत्कृष्ट स्थितिको बांधनेवाले जीवके तीन हजार वर्षों में प्रदेशोंका निक्षेप नहीं होता, इस बातको बतलानेके लिये 'तीन हजार वर्ष प्रमाण आबाधाको छोड़कर ऐसा कहा है।
यहाँ ' श्रेणिप्ररूपणा' सामान्यकी अपेक्षा एकत्वको प्राप्त हुए इन दो ( अनन्तरोपनिधा और परम्परोपनिधा) अनुयोगद्वारोंके द्वारा चूँकि शेष पाँच अनुयोगद्वारोंकी सूचना की गई है अतः यहाँ प्ररूपणा, प्रमाण, श्रेणि, अवहार, भागाभाग और अल्पब हुत्व,
१ आप्रती ' रचणाए पहावेण पहाणभावेण' इति पाठः।.
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