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२२० ] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, ६, ५२. मेलाविय सुहुमेइंदियअपज्जत्तयस्स संकिलेस-विसोहिहाणेसु गुणिदेसु बादरेइंदियअपज्जत्तयस्स संकिलेस-विसोहिट्ठाणाणि होति । पुणो एदेसु सुहुमेइंदियअपज्जत्तयस्स संकिलेस-विसोहिहाणेहि ओवट्टिदेसु गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो आगच्छदि ।
एदेसिं गुणगाराणं मेलावणविहाणं संदिटिमवलंबिय उच्चदे । तं जहा-सुहुमेइंदिय अपजत्तयस्स णाणागुणहाणिसलागाओ विरलिय विगं करिय अण्णोण्णभत्थं कादूण स्वे अवणिदे एत्तियं होदि [३]। पुणो एदेण अण्णोण्णभत्थरासिणा सुहुमउवरिमबादरणाणागुणहाणिसलागाओ [७] विरलय विगं करिय अण्णोण्णब्भत्यरासिम्हि भागे हिंदे भागलद्वमेत्तियं होदि [१२८।३] । पुणो लद्धे एदम्हि [१२८] सरिसच्छेदं करिय पक्खित्ते एत्तिय होदि [५१२।३] । पुणो एदेण पलिदोवमस्स असंखेजदिभागेण सुहुमेइंदियसव्वज्झवसाणहाणेसु [३८४००] गुणिदेसु बादरअपजत्तज्झवसाणहाणाणि पढमगुणहाणिअज्झजवसाणमेत्तेण अहियाणि होति [६५५३६००] । पुणो एत्तियमेत्तेण [१००] हाइदृण इच्छामो त्ति बादरेइंदियअपजत्तयस्स सव्वणाणागुणहाणिसलागाओ विरलिय विगं करिय अण्णोण्णभत्थे कदे एत्तियं होदि । तं च एदं [६५५३६] । पुणो एदेण पढमगुणहाणिदव्वे गुणिदे पढमगुहाणिअज्झवसाणाहियसव्वज्झवसाणपमाणं होदि । तं च एदं [६५५३६००] । स्थानोंको गुणित करनेपर बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तक के संक्लेश विशुद्धिस्थान होते हैं। अब इनमें सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके संक्लेश-विशुद्धिस्थानोंका भाग देनेपर पल्योपमका असंख्यातवां भाग गुणकार प्राप्त होता है।
अब संदृष्टिका आश्रय करके इन गुणकारोंके मिलानेके विधानको कहते हैं । वह इस प्रकार है-सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तककी नानागुणहानिशालाकाओंका विरलन करके दुगुणाकर परस्पर गुणा करके जो राशि प्राप्त हो उसमेंसे एक कम करनेपर इतना होता है-३४३-४; ४-१-३ । अब सूक्ष्म जीवकी अपेक्षा बादर जीवकी आगेकी नानागुणहानि. शलाकाओं ( १० से१६ तक ७) का विरलनकर दुना करके परस्पर गुणा करने पर जो राशि प्राप्त हो उसमें उक्त अन्योन्याम्यस्त राशिका भाग देनेपर लब्ध इतना होता है३४६x६x६x६४३४३१२१, १२८:३१३८ । इस लब्ध राशिमें इस (१२८) को समच्छेद करके मिलानेपर इतना होता है-१२८-३६४, ३४+13=५३३ । इस पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र उस राशिके सूक्ष्म एकेन्द्रियके समस्त अध्यवसानोंको करनेपर बादर अपर्याप्तके अध्यवसान प्रथम गुणहानिके अध्यवसानस्थानोंसे अधिक होते हैं--३८४०:४५.१२६५५३६०० । अब चूंकि ये इतने (१००) मात्रसे हीन अभीष्ट हैं, अत एव बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तककी समस्त (१६) गुणहानिशलाकाओंका विरलन कर द्विगुणा करके परस्पर गुणा करनेपर इतना होता है । वह यह है-६५५३६ । इससे प्रथम गुणहानिके द्रव्यको गुणित करनेपर प्रथम गुणहानिके अध्यवसानस्थानोंसे अधिक समस्त अध्यवसानस्थानोंका प्रमाण होता है। वह यह है-६५५३६४१००-६५५३६०० । इस
१ प्रतिषु [५१२] इति पाठः । २ प्रतिषु 'सव्वज्झवसाय' इति पाठः।
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