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४, २, ६, ५३.] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे ठिदिबंधट्ठाणपरूवणा [२२१ एदस्स रासिस्स जदि एत्तियो [५१२।३] गुणगाररासी लन्मदि, तो एत्तियस्य [१००]' किं लभामो ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए एत्तियं होदि [११३८४] । पुणो एदम्मि पुविल्लगुणगाररासीदो [५१२।३] सरिसच्छेदं कादूण अवणिदे गुणगाररासी एत्तियो होदि [६५५३५॥३८४] । पुणो एदेण पलिदोवमस्स असंखेजदिभागेण सुहुमेइंदियअपजत्तयस्स सव्वज्झवसाणटाणेसु मेलाविय [३८४००] गुणिदेसु बादरेइंदियअपजत्तयस्स सव्वज्झवसाणहाणाणि होति । पमाणमेदं [६५५३५००] । एदं गुणगारविहाणं उवरि सव्वत्थ संभविय वत्तव्वं ।
सुहमेइंदियपज्जत्तयस्स संकिलेस-विसोहिट्ठाणाणि
असंखेज्जगुणाणि ॥ ५३ ॥ को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो। एत्य गुणगाराणयमविहाणं पुव्वं व परवेदव्वं । कुदो ? सुहुमेइंदियपजत्तो विसुज्झमाणो बादरेइंदियअपजत्तयस्स सबटिदिबंधहाणहितो संखेजगुणाणि हिदिबंधट्ठाणाणि हेट्ठा ओसरदि, संकिलेसंतो वि तेहितो संखेजगुणाणि हिदिबंधट्ठाणाणि उवरि चडदि त्ति गुरुवदेसादो।
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(६५५३६००) राशिकी यदि इतनी (५३३) मात्र गुणाकार राशि पायी जाती है, तो वह इतने (१००) मात्रकी कितनी पायी जावेगी, इस प्रकार प्रमा गसे फलगुणित इच्छाको अपवर्तित करनेपर इतना होता है-५१२४१००:६५५३६००-२६ -टेल इसको समच्छेद करके पूर्वकी गुणकार राशि मेंसे घटानेपर इतना होता है(१५१६ - उदट- ३५) पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र उक्त गुणकार राशिसे सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके समस्त अध्यवसानस्थानोंको मिलाकर गुणित करनेपर बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके समस्त अध्यवसानस्थान होते हैं। उनका प्रमाण यह है-१२८००+२५६००)४ ६५१३४००-६५५३५००। गुणकारकी इस विधिको आगे सब जगह यथासम्भव कहना चाहिये। __उनसे सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकके संक्लेश-विशुद्धिस्थान असंख्यातगुणे हैं ॥ ५३॥
यहां गुणकार क्या है ? गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है। यहां गुणकार लानेकी विधिकी प्ररूपणा पहिलेके ही समान करना चाहिये, क्योंकि, सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तक जीव विशुद्ध होता हुआ बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके सब स्थितिबन्धस्थानोंकी अपेक्षा संख्यातगुणे स्थितिबन्धस्थान नीचे हटता है, तथा वहीं संक्लेशको प्राप्त होता हुआ उक्त स्थानोंकी अपेक्षा असंख्यातगुणे स्थान ऊपर चढ़ता है। ऐसा गुरूका उपदेश है।
२ प्रतिषु ६५५३५ एवंविधात्र
१ प्रतिषु संख्येयं 'लभामो ति' इत्यतः पश्चादुपलाम्यते । संख्या समुपलम्यते।
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