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छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ६, १४. बादरेइंदियपजत्तयस्स संकिलेस विसोहिट्ठाणाणि
असंखेज्जगुणाणि ॥ ५४॥ को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो । एत्थ गुणगारसाहणं पुव्वं व वत्तव्वं । बीइंदियअपज्जत्तयस्स संकिलेस-विसोहिट्ठाणाणि
असंखेज्जगुणाणि ॥ ५५॥
बादरेइंदियपजत्तयस्स डिदिबंधट्टाणेहिंतो बीइंदियअपजत्तयस्स पलिदोवमस्स असंखेजदिभागमेत्तहिदिबंधट्ठाणाणि जेण असंखेजगुणाणि तेण संकिलेस-विसोहिहाणाणं पि असंखेजगुणत्तं ण विरुज्झदे । एत्थ गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो ।
बीइंदियपज्जत्तयस्स संकिलेस-विसोहिट्ठाणाणि
असंखेज्जगुणाणि ॥५६॥
को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो । कुदो ? विसोहि-संकिलेसाणं वसेण हेट्ठा उवरिं च अप्पिदहिदिबंधटाणेहिंतो संखेजगुणहिदिबंधट्ठाणाणमुवलंभादो।
तीइंदियअपज्जत्तयस्स संकिलेस-विसोहिट्ठाणाणि
असंखेज्जगुणाणि ॥ ५७॥ कथं पजत्तयस्स हिदिबंधहाणोहितो अपजत्तयस्स हिदिबंधट्ठाणाणं असंखेज्जगुणत्तं ? उनसे बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकके संक्लेश-विशुद्धिस्थान असंख्यातगुणे हैं ॥ ५४ ॥
गुणकार क्या है ? गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है । यहां गुणकारकी सिद्धिका कथन पहिलेके ही समान कहना चाहिये।
उनसे द्वीन्द्रिय अपर्याप्तकके संक्लेश-विशुद्धिस्थान असंख्यातगुणे हैं ॥ ५५ ॥
बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकके स्थितिबन्धस्थानोंकी अपेक्षा द्वीन्द्रिय अपर्याप्तकके पत्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र स्थितिबन्धस्थान चूँकि असंख्यातगुणे हैं, अतएव संक्लेश-विशुद्धिस्थानोंके भी असंख्यातगुणे होने में कोई विरोध नहीं है। यहां गुणकार पल्योपमंका असंख्यातवां भाग है।
द्वीन्द्रिय पर्याप्तकके संक्लेश-विशुद्धिस्थान असंख्यातगुणे हैं ॥ ५६ ॥
गुणकार क्या है ? गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है, क्योंकि, विशुद्धि अथवा संक्लेशके वशसे नीचे व ऊपर विवक्षित स्थितिबन्धस्थानोंकी अपेक्षा संख्यातगुणे स्थितिबन्धस्थान पाये जाते हैं।
त्रीन्द्रिय अपर्याप्सकके संक्लेश-विशुद्धिस्थान असंख्यातगुणे हैं ॥ ५७ ॥
शंका-पर्याप्तक जीवके स्थितिबन्धस्थानोंकी अपेक्षा अपर्याप्तक जीके स्थितिबन्धस्थान असंख्यातगुणे कैसे हो सकते हैं ?
१ अ-आ-काप्रतिषु · संखेज्जगुणतं', ताप्रतौ [अ] संखेज्जगुणत्तं' इति पाठः ।
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